भारत यात्रा का आनंद


 भारतीय संस्कृति

        भारतीय संस्कृति में, विस्तारित परिवार प्राय: घनिष्ठ होता है ।  मेरे चचेरे भाई एक-दूसरे को भाई  ही समझते हैं । इस तरह, मेरे विस्तारित परिवार में मेरे कई भाई-बहन, भतीजियां-भतीजे, और चाचा-चाची हैं । मैने अपनी इस यात्रा से पहले लगभग साढ़े छह साल में इन्हें नहीं देखा था । इस यात्रा ने मुझे अपने परिवार फिर से मिलने, अपनी चचेरी बहन  की शादी में शामिल होने, और कुछ नवीन स्थानों में समय व्यतीत करने का अवसर प्रदान किया ।  यहां मैने सबके नाम बदल कर लिखे हैं ताकि प्रत्येक की अनुमति की आवश्यकता न पड़े ।

मेरी यात्रा आरंभ हुई

      मेरी यह यात्रा  मेरे संत मित्र आदरणीय टी. टी. धर्मेंद्र की उपस्थिति में आरंभ हुई थी; उसकी उपस्थिति मेरी यात्रा को दाहिने पैर पर स्थापित कर देती है । आदरणीय धर्मेंद्र ने मुझे टोरंटो के पियर्सन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतार दिया, जहाँ से मैं एक एम्स्टर्डम जाने वाली उड़ान में सवार हुआ । हवाई जहाज़ में मेरे साथ वाली कुर्सी में बैठा व्यक्ति एक योग शिक्षक और आयुर्वेदिक चिकित्सक था । उड़ान के दौरान उसने मुझे आयुर्वेदिक उपचार और चिकित्सा में संक्षिप्त पाठ्यक्रम दिया, और उसने मुझे सूचित किया कि उसकी सेवाओं का शुल्क प्राय: $60/ घंटा होता है ।

      एम्स्टर्डम का शिफ़ोल हवाई अड्डा मेरे पसंदीदा पारगमन स्थानों में से एक है, क्योंकि इस हवाई अड्डे में एक ध्यान क्षेत्र है ।  संक्रमण में, श्याम के साथ मेरा एक घंटे का योग सत्र था, जिसने मुझे दिल्ली की अगली उड़ान के लिए चुस्त कर दिया ।

मैं दिल्ली पहुंचा

      मैं 5 फ़रवरी को दिल्ली पहुंचा जहां मेरे अंकल विक्रम और कज़न भाई करण मुझे लेने आए हुए थे । 

      दिल्ली में मेरा पहला दिन निश्चित ही घटनापूर्ण था । करण और मैंने दिन की शुरुआत आयुर्वेदिक मालिश करवाने से  की । हमारी मालिश दो सेवकों ने की जो एक साथ काम कर रहे थे, और उपचार के अंत, हम मालिश वाले तेल में पूरी तरह से भीगे हुए थे । अंकल के घर के पास ही शांति की संस्कृति के निर्माण पर एक परिचर्चा भी थी ।  मालिश के बाद हम दोनो इस सम्मेलन में शामिल हुए  । दिल्ली के लोगों के साथ कहानियां सांझा करने का  यह एक  अच्छा अनुभव था । ये लोग भारत के बच्चों के लिए शांति की संस्कृति को बढ़ावा देने में सहायता करने के लिए प्रशंसानीय काम कर रहे थे ।

      एक दिल को छू लेने वाला अभ्यास जो मैंने देखा वह था हाथ पकड़ने की आज़ादी । एक गैर-रोमांटिक तरीके से अक्सर दो पुरुषों को हाथ पकड़े हुए, या दो महिलाओं को हाथ पकड़े हुए पाया जाता है; पश्चिमी संस्कृति में इसे प्रेम का स्पष्ट संकेत माना जाता है । भारत में रहते हुए मेरी पसंदीदा गतिविधियों में से एक थी सड़क के किनारे ताज़ा निचोड़ा हुआ फलों का जूस पीना  । लगभग पच्चीस सेंट के बराबर के लिए आप एक लंबा गिलास आपके सामने निचोड़ा हुआ संतरे या मिश्रित फलों का रस ले सकते हैं । मेरे पिता ने तब से मुझे बताया कि जब मैं  छोटी आयु  में भारत आया था तो मुझे तब भी इसमें मज़ा आता था ।

चंडीगढ़

      दिल्ली में पूरे चार दिनों तक परिवार के साथ रहने के बाद, 10 फ़रवरी की प्रात:, मैंने चार घंटे की रेलगाड़ी की सवारी की चंडीगढ़ जाने के लिए, जहाँ मेरी आंटी विमला रहती थी । रेलगाड़ी की सवारी के दौरान, मैंने देखा कि कई परिवार रेल की पटरियों के पास ईंटों की जर्जर झोंपड़ियों में रहते थे । उत्तरी अमेरिका में हम घोर गरीबी के बारे में कुछ नहीं जानते; हमारी जेल  कोठरी भी  इन लोगों के लिए आलीशान आवास होगी ।   निराश्रित रहने की स्थिति के बावजूद, उनके चेहरों पर मुस्कान चमक रही थी । वे जैसे थे,  शायद वैसे ही खुश थे ।

      चंडीगढ़ एक खूबसूरत शहर है, जहां कॉलेज-टाउन के मध्य में एक बड़ी झील है। मुझे अवसर मिला आंटी के साथ झील के किनारे शांतीपूर्वक टहलने और इसके विश्व प्रसिद्ध रॉक गार्डन की सैर करने का, जो वास्तव में बहुत आनंदमय था । चंडीगढ़ में दो दिनों के बाद, 12 फ़रवरी की सुबह, मैं दुनिया की ध्यान-राजधानी धर्मशाला के लिए कार से रवाना हुआ ।

धर्मशाला और मैक्लॉडगंज

      धर्मशाला नाम का अर्थ है “धार्मिक विश्राम गृह” । यह परम पावन  दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती समुदाय का घर भी है । परम पावन का घर नामग्याल मठ, मैक्लॉड गंज में  है, जिसे ऊपरी धर्मशाला या छोटा ल्हासा के नाम से भी जाना जाता है। मैक्लॉडगंजध्यान, योग, रेकी और अन्य आध्यात्मिक प्रथाओं के पाठ्यक्रमों का  केंद्र भी है ।

      सभी पश्चिमी, तिब्बतियों और भारतीयों के लिए जो अपनी आध्यात्मिक उपलब्धियों को आगे बढ़ाने के लक्ष्य के साथ यहां आते हैं मैक्लॉडगंजएक सांस्कृतिक अक्षय पात्र है । यह समुद्र तल से लगभग 2100 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में एकांत में बसा हुआ है। धर्मशाला तक जाने वाली सड़कें खड़ी, घुमावदार और लगातार चढ़ाई वाली हैं । बंदर चंचलता से पहाड़ी की रेखा बनाते हैं ।

      पहली रात में ही मेरा मैक्लॉडगंज  के तिब्बती लोगों की दयालुता से परिचय हुआ ।  मैं एक होटल में भोलेपन से  एक मेज पर अकेले बैठ कर भोजन कर रहा था; एक बौद्ध भिक्षु ने मुझे अपने और अपने मित्र के साथ बैठने का निमंत्रण दिया ।  इस भिक्षु  ने मुझे तिब्बती लोगों की कठिनाइयों के बारे में विस्तार से बताया । उसने बताया कि कैसे, 2005 में, उसने कई अन्य लोगों के साथ तिब्बत से भारत की कठिन यात्रा की ।  वे हिमालय से होते हुए ल्हासा से धर्मशाला तक एक माह तक लगातार पैदल चलते रहे ।  चीनी सेना से पकड़े जाने पर मारे जाने के डर के कारण, वे रात में सफ़र करते थे और दिन में गुफ़ाओं में सोते थे । वे  केवल एक निश्चित प्रजाति के छोटे छोटे पौधों को खाते थे जो इस अमित्र इलाकों में उगता है । हर साल इस यात्रा को करते हुए कई तिब्बतियों की मृत्यु हुई, कारण थे शीतदंश, भुखमरी या चीनियों के हाथों पकड़े जाना । 

      दलाई लामा स्वयं इस समय विदेश यात्रा पर था – वह आदमी एक रॉक स्टार की तरह यात्रा करता है । फिर भी, मुझे नामग्याल मठ में जाने और उसके घर को देखने का आनंद मिला । दलाई लामा मठ और तिब्बती संग्रहालय में, मुझे तिब्बत में वर्तमान में हो रहे अन्याय के बारे में जानने का अवसर भी मिला ।   जो तिब्बती लोग को मातृभूमि में रह गए हैं उन्हें चीनी पुलिस नियमित रूप से पीटती है, विशेष रूप से धर्म और संस्कृति के खुले अभ्यास करने वाले भिक्षुओं और ननों को । मानव व्यवहार के सभी दो इरादों में से एक से प्रेरित होते हैं, या तो डर या प्यार, और यह डर का मनोविज्ञान है जो एक व्यक्ति को दूसरे को नुकसान  पहुचाने का कारण है । 

      मैक्लॉडगंज में रहते हुए, मैंने एक प्रसिद्ध मास्टर के संरक्षण में रेकी की दूसरी डिग्री भी पूरी की । मुझे अपने आप को ध्यान में विसर्जित करने का मौका भी मिला । मैं धम्म सिखरा विपश्यना ध्यान केंद्र में अपने दोस्तों का आभारी हूं क्योंकि उन्होंने  मेरी सुविधा के अनुसार केंद्र को खुला रखा ताकि मैं वहां ध्यान कर सकूं ।  निर्वासित तिब्बती सरकार के निचले धर्मशाला में कार्यालयों का दौरा करने और वहां काम कर रहे कुछ अधिकारियों से बात करने का सम्मान भी मुझे मिला । धर्मशाला एक शांत निवास है जो पूरी तरह से अपने नाम का अनुरूप है, और किसी की साधना को आगे बढ़ाने के लिए बिल्कुल आदर्श स्थान है । मैं बड़े उत्साह के साथ कहता हूं कि मैं धर्मशाला लौटने के लिए उत्सुक हूं ।

      मैक्लॉडगंज से मैं एक कार में पांच घंटे का सफ़र करके जम्मू पहुंचा ।  यह मेरे पिता का जन्मस्थान है ।  इसलिए, मेरे लिए वहां जाना बहुत व्यक्तिगत महत्व रखता था । मैं यहां शुक्रवार 20 तारीख की शाम को आया था, और 21 तारीख शनिवार को मेरे पास पूरा दिन जम्मू में बिताने के लिए था । मैं अगले दिन, रविवार, 22 तारीख को अपनी कज़न दीपिका की शादी के लिए वापिस चल पड़ा ।

      दीपिका लगभग पाँच साल पहले भारत से इंग्लैंड चली गई  थी । वहां वह शिक्षक महाविद्यालय गई, और बाद में एक शिक्षक की नौकरी की । वहाँ उसकी मुलाकात जैस्स नाम के युवक से हुई; उनकी शादी शुक्रवार यानी 27 फ़रवरी की शाम को होनी थी । जैस्स के  एक दर्जन करीबी परिवार और दोस्त उसके साथ इंग्लैंड से भारत आए हुए थे ।

बैंड बाजा और बारात

      भारतीय शादियों के उत्सवों की प्रकृति अतुलनीय होती है । दीपिका और जैस्स की शादी एक सप्ताह भर चलने वाला उत्सव थी ।   इस की शुरुआत सोमवार की शाम को मेरे अंकल विक्रम के घर पर एक छोटी सी सभा से हुई । बुधवार की शाम को अंगूठी समारोह था, और यह एक बाहरी उत्सव था जिसमें नृत्य, फूल और भोजन शामिल थे ।

      अगले दिन मेंहदी समारोह था जहां दीपिका ने अपने शरीर को सुंदर  डिजाइनों में मेंहदी से रंगा था ।  कई अन्य उपस्थित पुरुषों और महिलाओं ने भी अपने हाथों या अपनी बाहों के हिस्सों को मेंहदी पर मेंहदी से भिन्न चित्र बनवा लिए थे ।  मैने अपने बाएं हाथ पर एक मोर चित्र बनवाया था । इस रात में नृत्य, फूल और भोजन भी शामिल थे: किसी भी भारतीय उत्सव के तीन प्रमुख अंश  ।

      अंत में वह रात आ ही गई जिसकी हम सब को प्रतीक्षा थी । दीपिका अपनी पारंपरिक भारतीय वधु की सुंदर पोशाक में थी, जैस्स भी एक शेरवानी पहने हुए था ।  शादी की प्रथा तो चल ही रही थी पर  रात  फिर एक बार नृत्य, फूल और भोजन से भरपूर थी ; हमें प्रात: 5 बजे तक नींद नहीं आई ।

ऋषिकेश विश्व की योगराजधानी है

      शादी के बाद, मैंने ऋषिकेश जाने से पहले एक राहत का दिन लिया ।  यदि धर्मशाला विश्व की ध्यानराजधानी है तो ऋषिकेश निश्चय ही विश्व की योगराजधानी है । इसे पश्चिमी दुनिया में 1960 के दशक में जॉन, पॉल, जॉर्ज और रिंगो नाम के चार साथियों ने प्रसिद्ध किया था । यहीं पर बीटल्स योग और ध्यान सीखने आए थे, और उन्होंने अपनी उत्कृष्ट कृति, द व्हाइट एल्बम के अधिकांश गीतों की रचना की थी । ऋषिकेश को हिंदुओं द्वारा एक पवित्र शहर माना जाता है, और इसलिए शराब और मांस का सेवन सख्त वर्जित है ।

      मार्च 1 को जब मैं ऋषिकेश पहुंचा, उसी दिन सप्ताह भर चलने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव (IYF) की शुरुआत हो रही थी । मुझे भाग्य के एक अद्भुत झटके का आशीर्वाद मिला । दुनिया में IYF योगियों और योगिनियों का सबसे बड़ा जमावड़ा है, और इस वर्ष के आयोजन में लगभग पाँच सौ प्रतिभागी थे । और फिर सौभाग्यवश मैं IYF के आयोजन स्थान के बगल में रह रहा था ।

      मैं सांझ की सैर के लिए निकला । मैंने पहली बार गंगा नदी के किनारे बैठी एक भारी भीड़ को उत्सव के उद्घाटन का जश्न मनाते देखा । कहने की आवश्यकता  नहीं है, मैं भी नदी के किनारे भीड़ के बीच बैठ गया ।  एक अद्भुत आरती उत्सव मनाया जा रहा था । छोटे छोटे तेल के दीपक नदी में दैवीय स्रोत को वापस प्रकाश के लिए अर्पण किए जा रहे थे । हरिद्वार जैसे अन्य स्थानों की तुलना में ऋषिकेश में गंगा बहुत स्वच्छ  है, भले ही दोनों शहर कार से केवल एक घंटे की दूरी पर हैं ।

      अगले दिन मैंने IYF की कक्षाओं और उत्सवों में भाग लिया । पूरे दिन मैं दुनिया भर के कुछ अद्भुत लोगों से मिला । एक महत्वपूर्ण व्यक्ति जिससे मैं मिला, और जिसने मुझे विशेष रूप से पसंद किया, वह न्यूयॉर्क टाइम्स की सबसे अधिक बिकने वाली लेखिका जे ए थी । उसने खुशी-खुशी मुझे प्रोत्साहन के शब्द दिए क्योंकि मैंने अपने लेखक का जीवन अभी अभी शुरू किया था । 

      उस शाम मुझे एक बड़ा सम्मान दिया गया ।  मुझे   शाम के आरती समारोह में कैनडा का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा गया था । मैंने दुनिया की सबसे बड़ी योग सभा में अपने देश का प्रतिनिधित्व अतुलनीय कृतज्ञता के साथ किया ।  मुझे अगले दिन ऋषिकेश छोड़ना पड़ा – केवल इस तथ्य के कारण कि मेरे पास अगले दिन कैनडा के लिए उड़ान थी – उत्सव में भाग लेना एक अविश्वसनीय अनुभव था और, ईश्वर की इच्छा से, मैं निकट भविष्य में फिर से वापस आऊंगा ।

      मुझे प्यार करने वाले लोगों, विविध परिदृश्यों, एक आकर्षक संस्कृति और एक अतुलनीय आध्यात्मिक विरासत की उपस्थिति में विसर्जित होने की प्रसन्नता है ।   मैंने सीखा है कि नियति तरल है, और मैं इस बात से पूरी तरह उत्साहित हूं कि इसने मुझे एक बार फिर भारत माता की गोद में ला दिया है ।