
सीमित प्रश्न
एक सीमित प्रश्न एक ऐसा प्रश्न होता है जो अस्तित्व की प्रकृति के लिए प्रासंगिक है, किंतु इसका उत्तर केवल विज्ञान द्वारा नहीं दिया जा सकता, भले ही वह वैज्ञानिक समुदाय का अभिन्न अंग हो । “सीमित प्रश्न वैज्ञानिक उद्यम द्वारा समग्र रूप से उठाए गए सात्त्विक प्रश्न हैं किंतु विज्ञान के तर्क द्वारा इनके उत्तर नहीं दिए गए हैं।” यद्यपि विज्ञान ने हमारे ब्रह्मांड का वर्णन करने में अतिबृहत प्रगति की है, फिर भी जीवन के कुछ पहलू अकेले विज्ञान की सीमाओं के पार हैं । भौतिक पदार्थ के संदर्भ में ब्रह्मांड को परिभाषित करने में विज्ञान सक्षम है किंतु यह यंत्रवत दृष्टिकोण विज्ञान को ऐसी स्थिति में छोड़ देता है जहां कई अवधारणाएं इसके क्षेत्र से बाहर हैं । इस तरह की अवधारणाओं में सम्मिलित हैं आत्मा, मृत्यु के बाद का जीवन और सृष्टि का इतिहास । इन उपरोक्त और समान अवधारणाओं के संबंध में विज्ञान को इन सीमा प्रश्नों के उत्तर देने के प्रयास में धर्म या उससे भी अधिक सामान्य रूप से रहस्यमय दर्शन की सहायता की आवश्यकता है । विज्ञान और धर्म या विज्ञान और रहस्यवाद के बीच की खाई को पाटने में गूढ़ ज्ञान अत्यंत प्रासंगिक हैं ।
इतिहास में कई महान वैज्ञानिकों के मन में सुदृढ़ आध्यात्मिक या रहस्यमय विश्वास रह चुके हैं । पाइथागोरस, जिनके पुनर्जन्म और कर्म के विचार प्राचीन यूनान में ईसा के जन्म से लगभग 500 साल पहले क्रांतिकारी थे, आइंस्टाइन और यहां तक कि हाल ही में डेविड बोहम और जोएल प्रिब्रम जैसे भौतिकविदों तक; विज्ञान और रहस्यवाद के बीच संबंध को भुलाया नहीं जा सकता । धर्म तो रहस्यवाद पर पर्दा ही डाल देता है । मनुष्य की स्वयं के साधनों की सेवा के लिए धर्म का उपयोग करने की एक ऐतिहासिक प्रवृत्ति है, चाहे वे कितने भी टेढ़े हों । बाइबिल लिखे जाने के तीन सौ साल से भी कम समय के बाद, इसे कॉन्स्टेंटिनोपल के दरबार द्वारा संशोधित किया गया था । यह व्यापक रूप से माना जाता है कि बाइबिल में पुनर्जन्म और कर्म के संदर्भ सहित खंड थे लेकिन उन्हें इस समय हटा दिया गया था । इस हस्तक्षेप का एक और उदाहरण किंग जेम्स की देखरेख में 17वीं शताब्दी में बाइबल में किए गए संशोधन थे । सभी प्रमुख धर्मों में मनुष्य के अपने हितों के कारण हस्तक्षेप करने का इतिहास है । इस तरह के कारणों से यह सीमित प्रश्नों से निपटने के लिए अधिक प्रासंगिक है जो विज्ञान और रहस्यवाद को विज्ञान और धर्म के विरोध में पुल बनाते हैं, यद्यपि धर्म और रहस्यवाद तो घनिष्ठ भाई हैं ।
आत्मा को आंतरिक देवत्व के रूप में जाना जाता है, हिंदू धर्म में इसे आत्मा कहा जाता है, बौद्ध धर्म में इसे बुद्ध मन । एक प्रमुख प्रतिबंधी प्रश्न आत्मा के अस्तित्व का है । ईसाई धर्म में, आत्मा की अवधारणा को दुनिया के प्रमुख धर्मों द्वारा व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है, हालांकि, विज्ञान ने अभी तक इस अप्राकृतिक अवधारणा के सत्य या असत्य की स्विवीक्रिति नहीं दी है । कई प्रमुख वैज्ञानिकों ने आत्मा और उसके गुणों के विचार को स्पष्ट करने का प्रयास किया है । कैम्ब्रिज भौतिक विज्ञानी जॉन पोल्किंगहॉर्न आत्मा के बारे में अपना दृष्टिकोण ऐसे देते हैं, “आत्मा के बारे में मेरी समझ यह है कि यह लगभग असीम रूप से जटिल, गतिशील, सूचना-असर पैटर्न है, जो मेरे निर्जीव शरीर के मामले में किसी भी क्षण ले जाया जाता है और सभी घटकों में लगातार विकसित होता है – मेरे सांसारिक जीवन के समय में मेरे शारीरिक श्रृंगार में परिवर्तन । वह मनोदैहिक एकता मेरे शरीर के क्षय से मृत्यु पर भंग हो जाती है, लेकिन मेरा मानना है कि यह पूरी तरह से सुसंगत आशा है कि जो पैटर्न मैं हूं वह भगवान द्वारा याद किया जाएगा और जब वह मुझे एक नए वातावरण में पुनर्गठित करेगा तो इसकी तात्कालिकता को उसके द्वारा फिर से बनाया जाएगा । उसके चयन का यह उसका पुनरुत्थान का युगांतशास्त्रीय कार्य होगा।” यह आत्मा और पुनर्जन्म के बीच स्पष्ट अंतर्संबंध को प्रदर्शित करने वाली आत्मा का एक बहुत ही जटिल विवरण है । क्योंकि यदि भौतिक शरीर से कोई आत्मा बची है तो इसका अर्थ इस इकाई के लिए किसी प्रकार का पुनर्जन्म है ।
पुनर्जन्म की विचार धारा सीमित प्रश्न को जन्म देती है जिसे विज्ञान के कई क्षेत्रों में स्वीकार किया गया है, फिर भी वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करके इसे सिद्ध या अस्वीकृत नहीं किया गया है । यद्यपि, विज्ञान क्वांटम भौतिकी और अंतर समीकरणों के संयोजन का उपयोग करके एक तरह से पुनर्जन्म के विचार को सिद्ध करने में सक्षम होने के कगार पर है । यह दिखाकर कि ब्रह्मांड इलेक्ट्रॉनों से बना है और इलेक्ट्रॉनों में एक तरंग और कण का द्वैत अस्तित्व है, यह दिखाया जा सकता है कि पूरे ब्रह्मांड में एक आकार के बदलाव का यह गुण कुछ सीमा तक है । फ़ोरियर समीकरणों का उपयोग करके यह दिखाया जा सकता है कि किसी भी छवि को कई आयामों में एक तरंग में और फिर एक छवि में परिवर्तित किया जा सकता है । ये क्रांतिकारी प्रयोग संभवतः पुनर्जन्म के विचार को वैज्ञानिक पद्धति में समुचित बनाने में सक्षम हो सकते हैं । यह काम अभी पूर्ण नहीं हुआ, पर संभावना है कि विज्ञान इसके हल के निकट है । यह तथ्य कि हम इसे सिद्ध करने के और भी निकट हैं, इस निष्कर्ष की ओर ले जाता है कि जरूरी नहीं कि कल का सीमित प्रश्न आज का सीमित प्रश्न हो और आवश्यक नहीं कि आज का सीमित प्रश्न कल का सीमित प्रश्न हो । यह बहुत पेचीदा विषय है क्योंकि यह दर्शाता है कि एक सीमित प्रश्न का विचार भी निरंतर प्रवाह में है जैसा कि संपूर्ण ब्रह्मांड है । इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण भू-केन्द्रित ब्रह्मांड का पूर्व-कोपरनिकन दृष्टिकोण है । इस समय ग्रहों और सौर मंडल की कक्षाओं का प्रश्न विज्ञान के लिए एक सीमित प्रश्न था । उन्होंने धर्म की ओर रुख किया, और उस समय धर्म पर कैथोलिक चर्च का वर्चस्व था, जिसमें कहा गया था कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है । हालाँकि, जब कोपरनिकस और बाद में गैलीलियो साथ आए, तो वैज्ञानिक तरीकों से यह स्पष्ट हो गया कि सौर मंडल वास्तव में सूर्यकेंद्रित था, जिससे कल के सीमित प्रश्न को विज्ञान के तरीकों से उत्तर दिया गया था और इसलिए अब विज्ञान के लिए एक सीमित प्रश्न नहीं था । मेरा विश्वास है कि पुनर्जन्म और कर्म, कई धार्मिक और रहस्यमय स्कूलों के लंबे समय से सिद्धांत, जल्द ही उसी तरह सिद्ध होंगे। आता रहा
स्रिश्टी के निर्माण का विचार एक लंबे समय से सीमित प्रश्नों के क्षेत्र में आता रहा है । पूरे इतिहास में वैज्ञानिकों ने स्रिश्टी की उत्पत्ति की व्याख्या सिद्धांतों के साथ की है । वर्तमान में सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत सिद्धांत बिग बैंग का है । भौतिक यांत्रिकी की दृष्टि से बिग बैंग बहुत आश्वस्त करने वाला है । एक बिग बैंग का विचार पहली नज़र में तात्पर्य है कि स्रिश्टी की शुरुआत हुई थी, वास्तव में एक समय t = 0 था । हालांकि, इस प्रमुख विचार को बिग बैंग के ढांचे के भीतर आसानी से चुनौती दी जा सकती है । यह बहुत संभव है कि बिग बैंग स्वयं स्रिश्टी के लिए एक प्रकार के पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करता है । यह कौन कह सकता है कि क्या हमारा अनंत विस्तार करने वाला ब्रह्मांड वास्तव में एक दिन अपने आप ढह नहीं जाता है जिससे एक नए बिग बैंग का मार्ग प्रशस्त होता है ? और क्या होगा अगर इस तरह के असीम रूप से कई चक्र थे, अर्थात कई बिग बैंग्स ? विभिन्न धार्मिक परंपराओं में सृजन के बारे में अलग-अलग विचार हैं । बाइबिल के अनुसार, परमेश्वर ने सभी चीजों को मौखिक आदेशों की एक श्रृंखला के माध्यम से बनाया “आकाश प्रभु के वचन के द्वारा बनाया गया था, और उनके सभी यजमान उसके मुंह की सांस से बनाए गए थे ।” (भजन 33:6)। हिंदू धर्म के अनुसार, अनंत भगवान ब्रह्मां ने केवल अपनी आंखें खोलकर सर्वत्र ब्रह्मांड की रचना की, जब वह अपनी आंखें बंद करते हैं तो ब्रह्मांड का अस्तित्व समाप्त हो जाता है । जब ब्रह्मां फिर से अपनी आँखें खोलते हैं तो एक और चक्र शुरू होता है । इस प्रकार का दृष्टिकोण बताता है कि कैसे अनंत रूप से कई बिग बैंग या इस प्रकार की रचनाएँ हो सकती हैं, समय के विपरीत केवल एक रैखिक मात्रा है जो t = 0 से शुरू होती है और जब तक कुछ परिमित मात्रा के बराबर होती है।
इन भिन्न धार्मिक विचारों को ध्यान में रख कर विज्ञान अस्तित्व की प्रकृति के बारे में एक व्यापक, अधिक उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण दे सकता है जो तब वैज्ञानिकों को प्रकृति की परिभाषित करने में अधिक उदार दिमागी प्रगति करने की अनुमति देगा । सीमित प्रश्न के विचार के पीछे यही सार है । याद रखें, एक सीमित प्रश्न एक ऐसा प्रश्न है जो अस्तित्व की प्रकृति के लिए प्रासंगिक है, लेकिन इसका उत्तर केवल विज्ञान द्वारा नहीं दिया जा सकता है, भले ही यह वैज्ञानिक समुदाय का अभिन्न अंग हो । धर्म को अपनाकर, विज्ञान कल के सीमित प्रश्नों को आज की नई खोजों में बदल सकता है, जिससे विज्ञान की सीमाओं और समग्र रूप से अस्तित्व की प्रकृति के बारे में हमारी समझ का विस्तार हो सकता है ।
अनुवादक की टिप्पणी
प्रत्येक धर्म को केवल आंतरिक रूप से ही सुसंगत होना पड़ता है । बुद्ध को पुनर्जन्म पसंद नहीं था, इसलिए उसने अनात्मा बनाया । क्या लेखक चाहता है कि वैज्ञानिक सब धर्मों के प्रश्नों के उत्तर दें – चाहे वह बौद्ध धर्म हो या हिंदू धर्म ? क्या लेखक चाहता है कि विज्ञान एक धर्म या दूसरे धर्म का पक्ष रखे ? जब हाइजेनबर्ग ने परमाणु की संरचना दी, तो बोर ने उससे पूछा कि क्या उसका मॉडल एक निश्चित समय पर एक इलेक्ट्रॉन की सटीक स्थिति बता सकता है । हाइजेनबर्ग ने कहा नहीं, क्योंकि उसके मॉडल में यह प्रश्न उठता ही नहीं ।