बढ़ाव – चक्रवृद्धि व्याज (compound interest)
गणित के अध्यापक ने पिछली क्लास में टिन्कू और मनाल के क्रिकेट स्कोर को लेकर रैखिक समीकरण के बारे में समझाया था । क्लास के अंत में टिन्कू ने एक प्रश्न किया था,”क्या दो चरवस्तुओं (variables) की संख्या में हमेशा ही यही संबंध होता है ?” अध्यापक ने कहा था, “नहीं । अगली क्लास में मैं तुम्हें एक घातांक क्रम का उदाहरण दूंगा ।”
टिन्कू बहुत उत्साहित था कि ऐसे उदाहरण क्या हो सकते हैं । उसने तानिया से बात की ।
तानिया: टिन्कू, याद है कुछ दिन पहले हमने व्याज के बारे में बात की थी ?
टिन्कू: हां, 5,00,000 रुपए पर 18 वर्ष का साधारण व्याज और चक्रवृद्धी व्याज ।
तानिया: साधारण व्याज का समीकरण था मूल (5,00,000) + वर्षीय व्याजदर (10%) x वर्ष संख्या (18) ।
टिन्कू: हां, यह एक रैखिक समीकरण है जिसमें मूल (5,00,000) अवरोधन है और वर्षीय व्याजदर (10%) प्रवणता है वर्ष संख्या (18) के लिए ।
तानिया: इसमें व्याज दर और मूल दोनों हि स्थित थे ताकि किसी भी वर्ष में धन की वृद्धी स्थिर थी और पिछले इतिहास पर निर्भर नहीं करती थी ।
टिन्कू: हां ।
तानिया: और चक्रवृद्धी व्याज के लिए हम हर वर्ष के व्याज को मूल में जोड़ देते थे और व्याज इस नए मूल पर मिलता था । अत: इसका समीकरण था: मूल x (1 + एक वर्ष की बढ़ौती का दर) की घात वर्ष संख्या, जो बना था: 5,00,000 x (1.1)18 ।
टिन्कू: हां, इसकी चित्र रेखा तो रैखिक नहीं होगी । तो क्या सरजी चक्रवृद्धी व्याज का उदाहरण देंगे ?
तानिया: हो सकता है, या मंहगाई का, वह भी तो एक घातांक क्रम से बढ़ती है ।
क्लास में अध्यापक: पिछली क्लास में हमने कुल रन संख्या और ओवर संख्या के संबंध में सीखा था । टिन्कू, बताओ क्या अगले ओवर में एक बल्लेबाज़ कितने रन बनाएगा, उसका वर्तमान संख्या से कोई संबंध है ?
टिन्कू: नहीं, सरजी पर कभी कभी सैंचरी पूरी करते समय हो जाता है ।
अध्यापक: वह तो 50, 100 या 200 पूरी करते समय एक जैसा ही हो जाता है । तो आम तौर पर अगले ओवर में कितनी रन बनेगी, यह वर्तमान रन संख्या पर निर्भर नहीं करता यानी उससे अनाधीन (independent) होता है । जब लम्ब अक्ष की संख्या में वृद्धी पिछली वृद्धी से अनाधीन हो तो दो चरवस्तुओं की संख्या में संबंध रैखिक होता है । संबंध रैखिक कब नहीं होता ?
मनाल: सरजी, क्या मैं इससे संबंधित कहानी बताऊं ?
अध्यापक: बोलो ।
मनाल: मेरी बहन रानी मेरे से 9 वर्ष बड़ी है । मेरे पिताजी ने कहा की मुझे भी जेब खर्ची के लिए हर दिन उतने ही पैसे मिलेंगे जितने रानी को आठवीं श्रेणी में मिलते थे । तानिया के समझाने पर मैंने पिताजी को बताया कि हर वर्ष वस्तुओं का औसत मूल्य पिछले वर्ष से 10 % ऊंचा हो रहा है, इसलिए मुझे अधिक जेब खर्ची मिलनी चाहिए । पिताजी मान गए ।
मंहगाई का विश्लेषण (analysis of inflation)
अध्यापक: अच्छा है कि तेरे पिताजी मान गए और तेरी जेब खर्ची बढ़ गई । पर मंहगाई इतनी नहीं थी जितनी तूने बताई है । चलो आज मंहगाई के गणित की बात करते हैं । मैंने पिछले 60 वर्षों के CPI का विश्लेषण इस रेखा चित्र में किया था । मंहगाई का एक पैमाना है कि एक वर्ष की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (consumer price index or CPI) पिछले वर्ष से कितनी बढ़ी है । यदि भांति भांति सामग्री किसी ने 100 रुपए 1957 में खरीदी हो और CPI का बढ़ाव केवल 5 प्रतिशत हो, तो 1958 में उसी सामग्री के लिए 105 रुपए लगे होंगे, और यदि CPI का बढ़ाव वही रहा हो, तो 1959 में उसी सामग्री के 110.25 रुपए लगेंगे । पर CPI का बढ़ाव तो हर वर्ष बदलता ही रहता है । अब प्रश्न है कि हर वर्ष बढ़ती हुए दामों से 1957 की 100 रुपए की वस्तुएं 2017 में कितने की आएंगी । । मैं तुमें पिछले 60 वर्ष के दाम का रेखा चित्र दिखाता हूं । टिन्कू, इस बढ़ाव की रेखा तो सीधी नहीं है, न ।
टिन्कू: सरजी, तानिया मुस्कुरा रही है । हन दोनो ने सोचा था कि आप आज मंहगाई का ही उदाहरण देंगे । यह रेखा एक घातांक समीकरण से निकाली जाएगी ।
अध्यापक: वाह टिन्कू, बिल्कुल यह रेखा का समीकरण एक घातांक के अनुसार है । घातांक की रेखा का सरल रूप से समीकरण है:
y = a x bn । यहां a है 1957 का दाम जो 100 रुपए था, b है दो हर लगातार वर्षों की CPI के निवस्त का औसत और n है वर्ष संख्या । इस रेखा के लिए समीकरण है: दाम = 100 x 1.0735 (वर्ष -1957) । इस समीकरण को निकालने के विधि तुमें उच्च श्रेणियों में सिखाई जाएगी । हम इस चित्र से कहेंगे की 60 वर्ष की औसत प्रति वर्ष की बढ़ौती जिसे सरल भाषा में मंहगाई कहा जाता है 7.35% थी ।
मनाल: सरजी, धन्यवाद । अब मुझे पता लगा कि मंहगाई को कैसे नापा जाता है । मैं आज का लैसन पिताजी को व्यस्तारपूर्वक बताऊंगी और ईमानदारी से कह दूंगी कि औसत 10 प्रतिशत का आंकड़ा 7.35 प्रतिशत होना चाहिए था ।
हर वस्तू में बराबर मंहगाई नहीं होती
अध्यापक: नहीं ऐसा करना तो जल्दबाज़ी होगी । इस पैमाने में रोज़ के प्रयोग की सभी वस्तुएं शामिल थी । तू वह सब वस्तुएं तो अपनी जेब खर्ची में से नहीं खरीदती – इन पैसों से तू आटा नहीं लाती और मकान का किराया भी नहीं देती । अलग अलग चीज़ों की मंहगाई बराबर नहीं होती । यह समझने के लिए, आज की चुनौती सब को घर में करनी होगी ।
चुनौती
यदि आम वस्तुओं की मंहगाई का समीकरण हो:
अपेक्षित अंतिम वर्ष में दाम = प्रथम वर्ष में दाम x 1.0735 (अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष) ।
मान लो कि इस समीकरण का प्रयोग इन सभी वर्षों के लिए उचित था । तो नीचे वाली किस वस्तु की मंहगाई आम वस्तुओं से कम या अधिक थी ?
वर्ष | दाम
(रुपए) |
|
कैडबरी चाकलेट | 1980 | 5 |
2015 | 25 | |
डीटीसी – दिन का पास | 1975 | 12.5 |
2015 | 100 | |
फ़ैमाइना – पत्रिका | 1960 | 0.5 |
2015 | 60 | |
अमुल बट्टर | 1980 | 6.5 |
2015 | 182 | |
सिनेमा की टिकट | 1975 | 3 |
2015 | 700 |
कैडबरी चाकलेट: अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष = 2015 -1980 = 35
अपेक्षित अंतिम वर्ष में दाम = प्रथम वर्ष में दाम x 1.0735 (अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष) = 5 x 1.073535 = 59.85 रुपए ।
अंतिम वर्ष में 25 रुपए दाम अपेक्षित दाम से कम है यानि इसकी मंहगाई आम वस्तुओं से कम हुई है ।
डीटीसी – दिन का पास: अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष = 2015 -1975 = 40
अपेक्षित अंतिम वर्ष में दाम = प्रथम वर्ष में दाम x 1.0735 (अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष) = 12.5 x 1.073540 = 213.30 रुपए ।
अंतिम वर्ष में 100 रुपए दाम अपेक्षित दाम से कम है यानि इसकी मंहगाई आम वस्तुओं से कम हुई है ।
फ़ैमाइना – पत्रिका: अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष = 2015 -1960 = 55
अपेक्षित अंतिम वर्ष में दाम = प्रथम वर्ष में दाम x 1.0735 (अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष) = 0.5 x 1.073555 = 24.72 रुपए ।
अंतिम वर्ष में 60 रुपए दाम अपेक्षित दाम से अधिक है यानि इसकी मंहगाई आम वस्तुओं से अधिक हुई है ।
अमुल बट्टर: अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष = 2015 -1980 = 35
अपेक्षित अंतिम वर्ष में दाम = प्रथम वर्ष में दाम x 1.0735 (अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष) = 6.5 x 1.073535 = 77.80 रुपए ।
अंतिम वर्ष में 182 रुपए दाम अपेक्षित दाम से अधिक है यानि इसकी मंहगाई आम वस्तुओं से अधिक हुई है ।
सिनेमा की टिकट: अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष = 2015 -1975 = 40
अपेक्षित अंतिम वर्ष में दाम = प्रथम वर्ष में दाम x 1.0735 (अंतिम वर्ष – प्रथम वर्ष) = 3 x 1.073540 = 51.19 रुपए ।
अंतिम वर्ष में 700 रुपए दाम अपेक्षित दाम से अधिक है यानि इसकी मंहगाई आम वस्तुओं से अधिक हुई है ।