लोकसभा के चुनाव – 2019

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चुनाव और व्यापार

भारत में 2019 के लोकसभा चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणो में हो रहे हैं । स्वभाविक है कि देश के नागरिक इसमें पूर्ण रूप से अन्तर्ग्रस्त हैं । कई प्रकार के व्यापारियों ने भी इस चुनाव से अपनी जीविका बनाने के साधन निकाल लिए हैं ।  पत्रकारों के लिए तो अनियमित सूचना देने की दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ौती हो रही है – चाहे सूचना वास्तविक हो या फ़र्जी ।  यह चुनाव जलसों और जलूसें के लिए भी, यातायात से लेकर भोजन तक,  लोगों को व्यापार का अवसर दे रहे हैं । अरे, पानी की बोतलें बेचने वालों को भी व्यवसाय में बढ़ावा मिला है । चाहे अस्थाई काम ही हो चुनाव कई व्यापारियों को लाभ दे रहा है और कई मज़दूरों को जीविका ।

विवान देसाई ने अभी अभी बी ए पास की थी और कोई व्यवसाय या नौकरी ढूंढ रहा था । इतनी आसानी से कुछ भी नहीं मिलता । पिता का कपड़ों का व्यवसाय था और  उन्हों ने कहा भी कि विवान दुकान पर साथ आ जाए । किंतु उसने पिता को कहा कि वह पहले अपनी क्षमता को प्रमाणित करना चाहता है, और उसके बाद ही वह दुकान पर आएगा । अन्यथा दुकान के कर्मचारी भी उसका मान नहीं करेंगे । पिता ने इस बात को स्वीकार कर लिया, और यह भी कह दिया कि वह कोई नए कारोबार के लिए उसे उधार भी दे देंगे – यदि विवान को उचित लगे तो ।

विवान घर बैठा सुस्ती कर रहा था जब उसकी छोटी बहन ईशा स्कूल से वापिस आई ।

विवान: ईशा, तो स्कूल में आज क्या सीखा ?

ईशा: बहुत कुछ, पर सबसे बड़ी बात सीखी कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है । भैया, तुमने आज क्या किया ?

विवान: कुछ खास नहीं बस सुस्ती, पर तूने बड़ी पते की बात बताई कि भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है । धन्यवाद ।

यह कह कर विवान अपने कमरे में चला गया । ईशा तो हक्की बक्की हो गई कि क्या भैया यह भी नहीं जानते ।

सूरती विवान का व्यापार

विवान को 2014 के लोकसभा के चुनाव की याद आई । तब वह अभी हाई स्कूल में ही था । कितना जोश था, कितना उत्साह था उसके स्कूल के साथियों में कि गुजरात का मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, अब बी जे पी को लेकर इतना आगे ले आया, और भारत का प्रधानमंत्री बनने वाला था । तभी उसे याद आया कि उसने भी एक मोदी की शर्ट बड़े गर्व से पहनी थी । अभी अभी ईशा ने याद दिलाया था कि भारत कितना बड़ा लोकतंत्र है । केवल गुजरात में ही नहीं, अब पूरे भारत में मोदी लोकप्रिय है ।  2014 में तो मोदी लहर चली थी  ।  अभी तो अक्तूबर है, पर अगले साल (2019) में फिर से लोकसभा के चुनाव होंगे । क्यों ना वह इसका फ़ायदा उठाए और ऐसी शर्ट्स का व्यापार करे ? उसने सोचा कि केवल टी-शर्ट ही नहीं, वह हैट और की-चेन भी बेच सकता है । पर पिता जी और उनके कर्मचारियों को प्रभावित करने के लिए तो कुछ बड़ा करना होगा – पांच दस हज़ार कमाने से काम नहीं चलेगा  ।

विवान ने तय किया कि वह टी-शर्ट पर या तो मोदी का चिन्ह लगाएगा, या बी जे पी का और या दोनो का ।  इन के रंग होंगे सफ़ेद, पीले, भगवा या हल्के सलेटी ।  सूरत और अहमदाबाद की जन संख्या कुल 100 लाख के आसपास है । यदि 1000 में से 1 को वह टी शर्ट बेच सके तो 10,000 शर्ट की बिकरी हो जाएगी – चाहे यह किसी भी चिन्ह या रंग वाली हों । चलो, दिल्ली और मुम्बई में इतनी ना सही, पर इन दोनो बड़े शहरों को मिला कर 10,000 और बिक जानी चाहिएं । अगले दिन उसने पिताजी को अपनी व्यापारिक योजना बताई । वह यह सामान बनवा कर अपने मित्रों कि भेजेगा । वह मित्र अपने अपने शहरों में दुकानो को बेचने के लिए दे आएंगे और बिकने पर पैसे ले आएंगे । पिता जी ने कहा कि वह शामलाल थोक वाले को मिले और फिर आ कर उन से पैसे उधार ले जाए । अगले दिन वह शामलाल के पास गया, अपने पिता का नाम बता कर उसने अपनी योजना बताई और अपने लैप टाप से सारे डिज़ाइन भी दिखाए । बात चीत और मोल भाव करके यह तय हुआ कि पहली 10,000 के लिए वह 80 रुपए प्रति शर्ट का भाव होगा, अगली 10,000 के लिए 70  रुपए और उससे भी अगली 10,000 के लिए 60 रुपए ।  विवान ने कहा कि अभी तो वह 10,000 ही लेगा, और अगले 10,000 लेनी होंगी तो बाद में बात करेगा ।  शामलाल मान गया कि ऐसा करने पर भी उस दिन का बताया हुआ दाम ही रहेगा । उसके पास विवान दूसरी दुकानो के लिए हैट और की-चेन के थोक दाम भी पूछने गया ।

विवान ने पिताजी को सारी योजना बताई और 10  लाख (10,00,000) रुपए उधार मांगा । जिसमें से उसने 8 लाख रुपए की 10,000 शर्ट बनवाई, 1.5 लाख रुपए के 10,000 हैट और 50,000 रुपए की 10,000 की चेन । भागीदारियों के साथ मिल कर निर्णय हुआ कि यह 80 रुपए वाली टी-शर्ट, वह दुकानदार को 160 रुपए की बेचेंगे और उस पर 300 रुपए का दाम लिखा होगा ताकि दुकानदार भी अच्छे पैसे बना सके । जो हैट 15 रुपए में बना है उसे दुकानदार को 30 में देंगे और 5  में बनी  चेन को 10  में । सामान बना और विवान ने एक चौथाई दिल्ली भेज दिया और इतना ही मुंबई और अहमदाबाद  । बाकी एक चौथाई सूरत में ही रहा ।

पहली टी शर्ट भैया ने ईशा को दी, और कहा: धन्यवाद, मुझे याद दिलाने के लिए कि भारत सबसे बड़ा लोक तंत्र है । मैने यह टी शर्ट बनवाई हैं । पहली शर्ट तेरी । बाकी को मैं बेचूंगा ।

ईशा: धन्यवाद भैया । बढ़िया है । मैं स्कूल पहन कर जाऊंगी, मेरे सब मित्र ईर्श्या से जल जाएंगे ।

विवान: जलेंगे क्यों ? वह भी इन को खरीद सकेंगे ।

ईशा: कहां से ?

विवान: कई दुकानो से । तेरे स्कूल के सामने वाली दुकान से भी ।

योजना का सबसे कठिन काम

योजना का सबसे कठिन काम तो अब आरंभ हुआ । पहली दुकान तो आसान थी । ईशा के स्कूल से कई लोग इस के बारे में पूछ चुके थे कि कब आएगी, इसलिए दुकानदार एकदम इन्हें बेचने के लिए मान गया ।  विवान दुकानो पर जाता था । जहां भी जाता, अपने स्कूटर के साथ सामान को एक बड़े से थैले में ले जाता था । अधिकतर दुकान वाले तो मना कर देते थे पर फिर भी वह उनके पास अपना नाम और पता छोड़ आता था । कुछ दुकान वाले हर सामान के 50 या 100 की गिनती ले लेते थे । उसके मित्रों ने अहमदाबाद, दिल्ली और मुंबई में भी ऐसे ही किया, बल्कि दिल्ली वाला दोस्त तो आसपास के शहरों में भी गया ।

कुछ दिनो बाद विवान ने दुकानो को फ़ोन करके पूछना शुरू कर दिया कि कितना सामान बिका है । पहले तो बड़े निराशाजनक उत्तर मिलते थे  पर एक माह के बाद कुछ आशा हुई जब एक दुकानदार ने 16,000 रुपए विवान के बैंक में डाल दिए ।  फिर विवान ने सूरत और अहमदाबाद वाले दुकानदारों से पूछा कि इसके बाद कितना और सामान लेना चाहते हैं । साथ साथ उसने यह भी कहा कि बिके हुए सामान के पैसे उसके बैंक में जमा करवा दें । अहमदाबाद, दिल्ली और मुंबई के मित्रों से भी ऐसा ही करने को कहा । जनवरी के शुरू तक उसे 6 लाख रुप​ए मिल चुके थे ।

विवान शामलाल जी के पास गया और उन्हें 10,000 शर्ट और बनाने के लिए कह आया । कुछ सप्ताह बाद उसके पास 7 लाख रुपए हो ग​ए थे । वह शामलाल जी से टी शर्ट ले आया । फिर वही किया, एक चौथाई माल सूरत के लिए रख लिया, और बाकी को अहमदाबाद, मुंबई और दिल्ली वाले मित्रों को भेज दिया । अब तक चुनाव का प्रचार शुरू हो गया था और खास कर टी शर्ट की मांग बढ़ रही थी । कई दुकानदारों ने फ़ोन किया कि वह और सामान चाहते थे । जिन दुकानदारों ने पहले मना कर दिया था अब वह भी, चुनाव प्रचार के कारण इस सामान का महत्व समझ चुके थे और इसकी मांग कर रहे थे ।

विवान सब दुकानदारों के पीछे लगा रहा कि माल बिकने पर पैसे मेरे बैंक में जमा करवा दो । मुंबई वाले मित्र ने फ़ोन किया कि अच्छा होगा यदि और टी शर्ट बनवा ली जाएं । वह फिर शामलाल जी के पास गया और 10,000 और शर्ट बनाने के लिए कह आया । मार्च के अंत तक उसके पास काफ़ी पैसे आ चुके थे और वह 6 लाख रुपए दे कर शामलाल जी से 10.000 टी शर्ट ले आया ।

भागीदारों से मीटिंग में दो और निर्णय किए गए ।  टी शर्ट बनवाने के लिए यह अंतिम दौर होगा । दुकानदारों को कहा जाएगा कि पिछले सारे माल के पैसे दे दो । नए सामान के पैसे इस समय सामान लेने के साथ साथ ही देने होंगे ।  इस बार टी शर्ट पर दाम नहीं छपेंगे और वह अपनी इच्छा के अनुसार इन पर दाम लिख सकते हैं । कुछ दुकानदारों को यह उचित नहीं लगा पर सामान तेज़ी से बिक रहा था, इस लिए वह मान गए । अप्रैल के अंत तक विवान और उसके साथी सारा सामान दुकानदारों को बेच कर उसके दाम ले चुके थे ।

यह होता है गुजराती व्यापार

विवान पिताजी के पास गया और उसने दो काम किए । पहला तो उन्हें 10 लाख का उधार चुकाया और दूसरा – एक खाता दिखाया जिसमें कुल व्यय और आय का व्यौरा था । कुल 30,000 शर्ट बनवाई गई थी, पहली 10,000 के लिए 80 रुपए प्रति शर्ट लगे थे, अगले 10,000 के लिए 70 रुपए और आखिरी 10,000 के लिए 60 रुपए । तो शर्ट पर कुल 21 लाख रुपए व्यय था । दूसरे सामान और पोत-परिवहन भी शामिल थे । संयुक्त लाभ था: 52,00,000  बिक्री  घटाव  23,06,000 व्यय यानी 28,94,000 रुपए । इस लाभ को चार भागों में बांटा गया था । हर भाग  7,23,500 रुपए था । जिसका 70% दूसरे भागीदारियों ने रख कर 30% विवान को वापिस दिया था । यानी इन तीन मित्रों ने भी कुल 15,19,350 रुपए बनाए थे । पांच छै महीने के लिए यह पांच लाख से ऊपर हर मित्र के लिए बुरी कमाई नहीं थी ।    विवान ने अपने यातायात का व्यय भी लिखा था । सब कुछ करने के बाद उसने इस व्यवसाय में छै महीने में 13,64,650 रुपए बना लिए थे । पिताजी तो इस परिणाम से बहुत खुश थे – बेटे का व्यवसाय और उसमें भी दो लाख प्रति माह से ऊपर आय ।  इस काम के बाद विवान अपने पिता जी की दुकान में जूनियर भागीदार बन कर काम करने लगा ।

संक्षिप्त  खाता (रुपए)
व्यय कमाई
30,000 टी-शर्ट 21,00,000 48,00,000
10,000 हैट 1,50,000 3,00,000
10,000 की-चेन 50,000 1,00,000
पोत-परिवहन 6,000
तीन मित्रों का भाग ( 3 x 5,06,450) 15,19,350

 

विवान का यातायात 10,000
कुल 38,35,350 52,00,000
विवान का लाभ 13,64,650

चुनौती

दिल्ली में सुभाश नगर के एक दुकानदार ने 1000 मोदी चुनाव की टी शर्ट खरीद अक्तूबर में ही 1,60,000 रुपए देकर खरीद ली और 300 रुपए प्रति शर्ट के दाम पर बेचनी शुरू कर दी । जनवरी के अंत तक 400 शर्ट बिक गई ।

अब उसे लालच आ गया और उसने बाकी शर्ट पर 500 रुपए प्रति शर्ट मांगना शुरू कर दिया । ग्राहकों को बताता था कि मोदी जी की लोकप्रियता के कारण कंपनी ने दाम बढ़ा दिए हैं । चुनाव चलते रहे, पर मार्च के अंत तक उसने केवल 200 शर्ट ही और बेची और उसके पास 400 बाकी बची हुई थी ।

बेचारा घबरा गया । यदि यह शर्ट नहीं बिकी तो क्या करेगा ? अब उसने दाम तो 500 रुपए प्रति शर्ट ही रखा और बड़े से बोर्ड पर लिख दिया: मोदी जी के आदर में इन शर्ट पर 40% छूट । यदि मई के अंत तक वह 350 शर्ट बेच पाए और बाकी 50 उसकी दुकान में धूल इकट्ठी करती रहें, तो उसकी आय का विख्यात में व्यौरा दो ।

उत्तर: 1000 शर्ट पर व्यय: 160 x 1000 = 1,60,000  रुपए

पहली 400 शर्ट के 300 रुपए प्रति शर्ट से मिले:  400 x 300 = 1,20,000 रुपए ।

मूल्य बढ़ाकर 200 शर्ट के 500 रुपए प्रति शर्ट से मिले:  200 x 500 = 1,00,000 रुपए ।

500 रुपए प्रति शर्ट में से 40% छूट देने पर बेचने का असल दाम 500 x (100-40)/100 = 300 रुपए प्रति शर्ट – अरे वही दाम जो लालच से पहले लगाता था  ।

इन में से यदि केवल 350 ही बिकें तो  350 शर्ट के 300 रुपए प्रति शर्ट से मिले:  350 x 300 = 1,05,000 रुपए ।

कुल बिक्री = 1,20,000 + 1,00,000  + 1,05,000 = 3,25,000 रुपए  ।

शर्ट से लाभ = बिक्री – व्यय = 3,25,000 – 1,60,000 = 1,65,000   रुपए ।

ध्यान रहे कि उसकी दुकान का किराया, बिजली और पानी का व्यय नहीं गिना गया । संभव है कि वह दुकान पर इन शर्ट के अतिरिक्त और भी व्यवसाय करता होगा ।

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