समीर की याद में
समीर ग्रोवर (1980-2017) एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में गणित और अंग्रेज़ी का अध्यापक था । उसमें विद्यार्थियों को कहानियों से आकर्षित करने की रुचि थी । एक और अध्यापक से मिलकर उसने विद्यार्थियों की भिन्न अंक में रुचि लाने के लिए एक नाटक भी करवाया था । यह सारी कहानियां समीर की याद में हैं ।
SMILE program भी कुछ स्कूलों में उसकी याद में आरम्भ किया गया है । SMILE है Sameer’s Math Integration Literacy Exploration, जिस में विद्यार्थी गणित और साक्षरता की संधी करने का अन्वेषण करते हैं । इस प्रतियोगिता में विद्यार्थी गणित संबंधी कुछ भी बना कर समर्पित कर सकते हैं, जैसे कहानी, कविता, चित्र, वीडियो, खेल इत्यादी । अध्यापक इन प्रस्तुतियों को जांचते हैं और उच्च स्तर वाले विद्यार्थियों को मिलते हैं पुरस्कार और मान्यता । प्रतियोगिता के लिए समर्पित प्रस्तुति विद्यार्थी की बौद्धिक संपदा रहती है, अत: वह mathstories4u.com पर नहीं दिखाई जा सकती ।
संक्षिप्त विवरण
मेरी राय में गणित सीखने की क्षमता हर व्यक्ति में है । गणित का कहानियां शायद उनकी रुचि और प्रोत्साहन बढ़ा सकती हैं । यह एक भ्रांतिमूलक सोच होगी कि केवल इन कहानियों को पढ़ने से कोई गणित का जीनियस बन जाएगा । कहानियों के थोड़े से पाठकों की भी गणित में रुचि बढ़ा देना, इस कार्य की सफ़लता का चिन्ह होगा । यह दैवयोग नही हैं कि इन कहानियों के मुख्य पात्र नारियां हैं । इसका कारण है इस मिथक को चुनौती देना कि गणित लड़कियों का विषय नहीं है ।
अंकगणित
अंकगणित की कहानियां तानिया और उसके मित्रों के बारे में हैं । यह भारत के वातावरण और बदलती हुई सभ्यता के अनुसार हैं । तानिया एक संयुक्त परिवार में रहती है । उसकी सोच किसी महिलावादी से कम नहीं, जिसके अनुसार लड़कियां वह सब कुछ कर सकती हैं जो लड़के, और इससे उल्टी सोच वाले को वह फटकारने से नहीं डरती । पहली कहानी के शुरू में तीन साल की तानिया के चाचाजी उसे दिखाते हैं कि उसकी दो आंखें हैं और एक ही पेट । खेल कूद में परिजनो और मित्रों से तानिया सीखती रहती है । अंतिम कहानी (आयु 13-14 वर्ष) में वह संचयविन्यास विश्लेषण (combinatorial analysis) का प्रदर्शन करती है । अरे हां, भारत में सर्वलोकप्रिय खेल क्रिकेट को कैसे भूल सकते हैं – छै क्रिकेट की कहानियां हैं ।
रेखागणित
कई रेखागणित की कहानियों की नायिका अध्यापक रानिया अली जी हैं । रानिया अली जी एक गरीबों की बस्ती के एक प्राथमिक स्कूल में पढ़ाती हैं । अधिकतर छात्र वहां आते थे क्योंकि उन्हें मजबूर किया जाता है । स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता को थोड़ा सा धन उपजीविका के लिए दिया जाता है । अत: माता पिता बच्चों को ज़बरदस्ती स्कूल भेजते हैं । स्कूल के छात्रों को सीखने पढ़ने की रुचि शायद नाम मात्र भी नहीं है । रानिया अली जी को इस चुनौती का संपूर्ण ज्ञान है, अतः वह विद्यार्थिओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए नित नई विधियां खोजती हैं ।
त्रिकोणमिति, बीजगणित और कलन (Calculus)
असल बात है कि मैने पहले त्रिकोणमिति की सारी कहानियां लिखी थी और बाद में सारी और । यह कहानियां सैरा को नायिका बना कर लिखी गई थी जो अब एक किशोरी थी । किशोरावस्था के दो बड़े गुन हैं विद्रोह और प्रेम लीला । इन कहानियों मे प्रेम लीला चुनी गई थी । इन कहानियों में एक गणित प्रवीण सैरा जानी से प्रेम करती है । जब भी जानी बुलाता है, सैरा आ जाती है क्योंकि वह हमेशा उसी के साथ रहना चाहती है । सैरा और जानी काल्पनिक हो सकते हैं पर उनका प्रेम वास्तविक है । सैरा की अपने बायफ़्रैंड जानी के साथ प्रेम कथा यहां से शुरू होकर बीजगणित और कलन में, और स्कूल छोड़ने के बाद भी चलती रही । यह कहानियां उत्तरी अमेरिका के अनुभव से लिखी गई हैं पर सैरा के माता पिता भारत से आए थे । उसकी दादी भी साथ रहती है और उसी ने सैरा को पाला पोसा है ।
जब तक वह कलन पढ़ते हैं, वह लगभग 18 वर्ष के हो जाते हैं और जीवन की वास्तविकता को भी समझने लगते हैं । कलन की प्रेरणा मुझे मिली थी Calculus By and For Young People -Worksheets© by Don Cohen (ISBN 09621674-5-2) से ।
लगभग हर कहानी के बाद एक चुनौती दी गई है । कभी यह अभ्यास के लिए है और कभी एक नए विचार की शिक्षा के लिए ।
अलग अलग कहानियों के बारे में
सैरा और नैना, फ़िल्मी सितारों के पोस्टर, और चाकलेट और आइस क्रीम
समीर का छोटा भाई बीजगणित सीखने लगा तो वह विमूढ़ सा मेरे पास आया । मुझे पता था कि उसे बेसबाल के कार्ड खरीदने में बड़ी दिलचस्पी थी । तो हमने खिलाड़ियों के कार्डों के मूल्य में बात चीत की । फिर मैने दो खिलाड़ियों के नाम लिए और एक के 2 कार्ड और दूसरे के 3 के कुल मूल्य का समीकरण बना दिया । उसके बाद मैने हर खिलाड़ी के नाम के पहले अक्षर से वही समीकरण लिखा । बस इतना काफ़ी था । वह समझ गया कि नाम के पहले अक्षर की बजाय वह x या y भी लिख सकता था । तानिया और सैरा ने भी यही किया ।
शैल्डन और तपंगा – स्वाभिमान का युद्ध
मेरी कई विदेशी मित्रों से बात होती रहती है । अक्सर वह अकड़ से कहते हैं कि उनकी स्कूल की गणित की शिक्षा उत्तरी अमेरिका से कहीं बेहतर है । अकड़ तो तोड़नी ही पड़ती है । मैं उन्हें एक साधारण सा प्रश्न देता हूं । रेखा गणित से सबूत करो कि (a+b)(a-b) = a2-b2 । वह या तो आग बबूला हो जाते हैं या छुई मुई – कि बीजगणित के प्रश्न में रेखा गणित का क्या स्थान ? यह कहानी गणित के भिन्न विषयों के संबंध का ज़ोर ज़ोर से उच्चारण करती है ।
नोइडा से मथुरा की सैर
जब मैं स्वयं पढ़ रहा था, जेबखर्ची के लिए ट्यूशन पढ़ाता था । यह लड़का ग्यारहवीं क्लास में था और गणित में अच्छे नंबर लाना चाहता था । पहले दिन उसने एक प्रश्न पूछा । वह मुस्करा रहा था, शायद यह प्रश्न उसका ट्यूशन सर की क्षमता जानने के लिए था । यह कहानी उसी पर निर्भर है । मैने इसे उत्तर दि या और फिर समझाया कि क्यों वह उत्तर उचित था ।
समीर के छोटे भाई (आयु 10 वर्ष) ने मुझे पूछा कि ज्यामितीय माध्य क्या होता है । मैने परिभाषा दी तो वह एकदम बोला, ” तो दो संख्याओं का ज्यामितीय माध्य कभी उनके समांतर माध्य से अधिक नहीं हो सकता ” । निस्संदेह, वार्तालाप चलता रहा । इस कहानी की चुनौती में भी आ गया ।
नैना की कहानी
बच्चे नई और लंबी कहानियां मांगते थे । मैने एक खलिहान वाली कहानी अपने बेटे को सुनाई थी । इस में एक पंछी आता है और एक दाना ले कर फुर्र हो जाता है । उसके बाद हर बार आने वाले पंछियों कि संख्या दुगनी होती जाती है । जब पंछियों की संख्या 32 हो जाती थी तो वह सो जाता था । वह अवश्य ही सपनों में भी संख्याओं को दुगने करता रहता होगा । आठ वर्ष की आयु में वह संख्याओं को दुगना करके 16384 तक आराम से पहुंच जाता था । अंकगणित की दादी मां की लंबी कहानी भी इस आधार पर है । बीज गणित में यह कहानी थोड़ा और रूप लेती है पर आधार तो वही रहता है, और घातांक फलन के नियमों का विषय बन जाती है ।
ईशू की टाफ़ी कि लत
मैं अपनी pharmacology की क्लास में इन नियमों को zero order और first order clearance समझाने के लिए प्रयोग करता था ।
क्या मोबिल फ़ोन के प्रयोग से अच्छे नंबर आते हैं ?, मैडम बैनर्जी नें होमवर्क दिया, माला का प्रश्न, जोगी की जिज्ञासा
मेरी मुलाकात एक काफ़ी शाप में एक गणित अध्यापक से हुई । वह परेशान था । उसने बताया कि वह द्विघाती समीकरण का विषय पढ़ा रहा था पर किसी भी विद्यार्थी की रुचि उसमें नहीं थी । वह तो अपने मोबाइल में मस्त थे । गुस्से में था । यही होता है इस कहानी में । फिर कहानी में मोड़ तोड़ आते हैं ।
प्रिया का भूगोल प्रोजैक्ट
सन 1968 में भारत से कैनेडा आया था । वही देसी ढंग से अंग्रेज़ी बोलता था बिना यहां की वर्ग बोली के । अत: कई मित्र मुझे एक झावूं सा बंदा मानते थे । कैफ़ीटेरिया में मेरी एक ऐसे मित्र से मुलाकात हुई । वह भूगोल में एम ए कर रहा था । उसने एक रुचिकर प्रोजेक्ट किया था । क्षेत्र की एक मधुशाला में जाकर हर एक व्यक्ति से पूछा, “आप मधुशाला में आने से बिल्कुल पहले कितने दूर थे ?” सीधा साधा सवाल था और उसकी आशा थी कि आने वालों की संख्या और दूरी का विपरीत संबंध होगा । बेचारा परेशान था, उसके आंकड़े इस संबंध से जुड़ नहीं रहे थे । मुझे उस मधुशाला की स्थिति अच्छी तरह पता थी । इस लिए मैने उससे कहा,”इन डेटा का धुवीय निर्देशांक में चित्र बना कर देख “। जब उसने यह किया तो उसके आंकड़े एक सरल और सुंदर रुचिकर सिद्धान्त में स्पष्ट हो गए । इसका कारण उस नगर के भूगोल में था । उस दिन से उसने मेरे बारे में अपनी राय बदल ली । यह लगभग 50 वर्ष पुराना किस्सा इस कहानी का प्रेरणास्रोत है ।
फैशन शो
मैडम सी एक सातवीं क्लास की अध्यापिका था । वह चाहती थी कि हर विद्यार्थी हर माह 100 पेज पढ़े जो कि पाठ्यक्रम में ना हों, और उसे एक पेज का पुस्तक प्रतिवेदन दे । समीर के भाई ने एक त्रिकोणमिति की पुस्तक चुनी । उसके प्रतिवेदन में दो रेखा चित्र थे । एक था फूल जो एक त्रिकोणमिति फलन का धुवीय निर्देशांक में रेखा चित्र से बना था । वह चित्र अभी भी मेरे कमरे में है ।
डिन्नर डेट और जुड़वां पहाड़ियां
मेरा एक जानकार विद्यार्थी यूनिवर्सिटी छोड़ कर चला गया क्यों कि वह कलन के कोर्स में फ़ेल हो गया था । उससे बात करने से पता चला था कि वह हर फलन के डेरिवेटिव को रटता था पर भूल जाता था । पूछताछ से पता लगा कि उसको अहसास ही नहीं था कि डेरिवेटिव एक ढलान होती है, किसी ने स्पष्ट किया ही नहीं था । यहां, सैरा ने यह बात जानी को खोल कर समझाई है ।