राजनीतिक मतभेत
राजनीतिक मतभेत के कारण, मेरे पच्चहतरवें जन्म दिन के बाद शीघ्र ही मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया । सरकारी अधिकारियों का दावा था कि मेरे लेख प्राक्रितिक रूप में शांतिपूर्वक होते हुए भी आपत्ति जनक थे क्यों कि वह जनता को क्रांति के लिए उत्साहिक कर सकते थे । मुझे एक कढ़े बंदीग्रह में अनुपयुक्त व्यक्तियों के साथ रखा गया । अगले कई माह मैने अपने जेल के कमरे में ही तपस्या और व्रत करके बिताए । कुछ समय के बाद मुझे हानिहीन समझा जाने लगा पर फ़िर भी मुझे जेल में बंद ही रखा गया ।
जेल के कमरे की दीवारों पर चित्र
मैने एक सिपाही से मित्रता की । उससे मैने अनुग्रह किया कि मुझे जलरंग दिलाए और अपने जेल के कमरे की दीवारों पर चित्र बनाने की अनुमति भी । अगले कई दिन मैं निरंतर सहनशीलता से चित्र बनाता गया । एक चित्र में मैने एक पर्वत बनाया जो आलीशान जंगल से घिरा हुआ था, जिसमें हरे भरे बेलबूटे थे और जिसके नीचे के भाग में एक झील थी । इस चित्र में एक नीला आकाश था जिसमें सफ़ेद रंग के बादल मंडरा रहे थे, और पीछे से एक संतरी रंग का सूर्य इन्हें सजा रहा था । अंत में मैने इस चित्र के सामने की ओर एक पक्षी बनाया जिसके पंख फैले हुए थे, चोंच आकाश की ओर थी जैसे कि वह गगन की ओर देख कर उड़ान के लिए तैयार बैठा हो ।
मैं पक्षी की पीठ पर बैठा और उड़ गया
वह दिन आ ही गया, जब कई सजे धजे अधिकारी आए और मुझे पैरोल सुनवाई के लिए ले गए । मुझे पता था या मैं अनुमान तो लगा ही सकता था कि इस सुनवाई का परिमाण क्या होगा । छ: माह की कैद के बाद मुझे आज़ादी मिली यदि मैं वचन दूं कि मैं अपने लेख प्रकाशित नहीं करूंगा । वह सिपाही, जो अब तक मेरा मित्र बन चुका था, अधिकारियों के साथ बरामदे में मेरे कमरे की ओर आया और उसने कमरे का ताला खोल दिया । दीवार वाली चित्र की गहराई को ध्यान से देखते हुए मैं पद्मासन मुद्रा से धीरे से उठा । मैने अधिकारियों को हाथ हिला कर विदा कही, आलीशान पक्षी की पीठ पर छलांग लगा कर बैठा और राजस्वी पर्वतों के ऊपर से मुस्कराते हुए सूर्यास्त की ओर उड़ गया ।