भाषाओं का खो जाना

bhasha

विश्व की सारी संस्क्रितियां और भाषाएं बचाई जाएं

“गैट बियांड बेबल” के लेखक कैन वीवा की एक भावुक दलील है कि विश्व की सारी संस्क्रितियां और भाषाएं बचाई जाएं । लेखक ने आम तौर पर मानी हुई उस राय का खंडन किया है “कि हमारी संस्क्रित्यों और भाषाओं के खो जाने का कारण है कि भाषा निरंतर समय तक स्तंभित नहीं रह सकती” ।  उल्टे भाषा का विकास होता रहता है और इस में क​ई प्रकार के सम्मेलन होते रहते हैं । यह वास्तविक है कि आज की 6800 भाषाओं में से आधी लुप्त हो जाएंगी; और यह असंभव है कि इन सब भाषाओं की जड़ें नवीन भाषाओं में स्तंभित रहेंगी । अतः मुझे तो यही लगता है कि परम्पराओं के वृक्ष काटने पर संस्क्रित्यों की जढ़ें भी सदा के लिए मर जाएंगी । यह भी मानना पड़ैगा कि हमारी भाषा और जीवन के निरंतर परिवर्तन हमें, ऊपर या नीचे, किसी भी दिशा में ले जा सकते हैं ।

अनुत्तर्दायी रूप से तेल की खोज

मान लिया  कि भाषाओं और सभ्यताओं में निरन्तर परिवर्तन आते रहते हैं, पर हमे विस्तार में यह जांचना पड़ेगा कि क्यों समूह भूमंडल में भाषाओं और संस्क्रितियों की  लुप्ति एक तीव्र गति से हो रही है ।  कई हालातों में तो सामाजिक और आर्थिक दशाएं इनके स्तंभित होने में बाधा डालती हैं ।  यह दलील भी दी जा सकती है कि हमारे पूर्वज सहस्त्रों वर्षों से जिस भांति रह रहे थे, अब वह असम्भव है । इस कठिनाई का एक उदाहरन है अनुत्तर्दायी रूप से तेल की खोज, जिस ने विकासशील देशों में कई  समुदाओं को नष्ट कर दिया है ।

सम्पन्न देशों के सदस्यों का उत्तरदायित्व है कि वे रक्षाहीन लोगों की दुर्दशा की ओर भी ध्यान दें । यदि विकासशील देश अपनी परम्पराओं, संस्क्रितियों और भाषाओं सहित आगे बढ़ें तो पूरे भूमंडल में भाषाओं के स्तम्भित रहने की सम्भावना अधिक होगी । इस नीती के आत्मपरिवर्तन से वे पूरी दुनियां के सम्पर्क तकनीकी को उपयुक्त कर सकेंगे ।

अंग्रेज़ी एक भूमंडल भाषा

कहा जाता है कि अच्छी  अर्थप्राप्ति के लिए युवा लोग  बढ़ते आंकड़ों में अपने समुदाओं को छोड़ कर अंग्रेज़ी बोलने वाले देशों को जा रहे हैं ।  इस प्रदर्शन को अंग्रेज़ी के फैलाव के समर्थन की व्याख्या देने वाले, वास्तव  में, अंग्रेज़ी को समूहमंडली भाषा होने की केवल  सफ़ाई ही देते हैं ।  इतिहास समर्थक है कि प्रदेशों में निर्दय हिंसा और निराकुश शासन से ही अंग्रेज़ी एक भूमंडल भाषा बन पाई है ।  इस प्रकार से अंग्रेज़ी का यह आधुनिक स्थान आम जनता के उपीड़ित कंधों पर चढ़ कर बनाया गया है । तात्पर्य यह है कि अगर लोगों में अंग्रेज़ी बोलने वालों का सम्पर्क  न होता तो इस भाषा का भूमंडली बनना कठिन था ।

संकटग्रस्त भाषाओं  को विकृति से बचाने  के लिए नवीन उपायों की आवश्यकता

यह वार्तालाप एक बारीकी और कूटयुक्ति से एक प्रश्न का बीज बोता है: क्या परम्पराओं और भाषाओं की विभिन्नता और अंग्रेज़ी की भूमंडली दोनो सहजीवित रह सकते हैं ?  सामान्य रूप से विश्लेशण करने पर यह तो प्रत्यक्ष है कि भाषाएं मरती नहीं किंतु निरन्तर बदलती रहती हैं ।  फिर भी संकटग्रस्त भाषाओं  को विकृति से बचाने  के लिए नवीन उपायों की आवश्यकता है ।  निश्चित रूप से, भाषाएं सदा स्तम्भित नहीं रह सकतीं   पर सामाजिक एकत्व के लिए उनका बलिदान भी स्वीकारयोग्य नहीं है

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