मैडिटेशन की कई विधियां हैं पर यह उल्लेख केवल अनापन-सती कार्य प्रणाली पर केंद्रित है । अनापन-सती पाली भाषा का शब्द है (भाषा जिस में बुद्ध धर्मग्रंथ लिखे गए थे) और इसका हिंदी अनुवाद है श्वसन कला की अभिज्ञता । बुद्ध सन्यासी और आम जनता दोनो अनापन-सती का पालन करते हैं । कुछ लोगों का विश्वास है कि महात्मा बुद्ध का ज्ञानोदय अनापन-सती के पालन करते हुए ही हुआ था ।
श्वसन कला और मैडीटेशन
एक शिष्य ने मैडिटेशन के एक प्रसिद्ध गुरू से पूछा, “प्रगाढ़ या चिंतन क्या होता है ?” उसका उत्तर था,”एक विचार का अंत आने के बाद और अगले विचार के आरंभ होने से पहले, एक विराम होता है । इस विराम को बढ़ाने को प्रगाढ़ या चिंतन या मैडिटेशन कहते हैं ।” मेरे विचार में सचमुच यही प्रगाढ़ का सारांश है । विचारों के बीच वाले विराम को बढ़ा कर, हम मन को शांत और अपने आप को अधिक सचेत कर सकते हैं ।
दूसरे मैडिटेशन के अभ्यासों की तरह, अनापन-सती भी अधिकतर बैठ कर ही की जाती है । यह दोनो तरह बैठ कर अच्छाई से की जा सकती है – चाहे फ़र्श पर पद्मासन में या एक कुर्सी पर । कमर सीधी होनी चाहिए पर अकड़ी हुई नहीं, सिर रीढ़ के ऊपर होना चाहिए । गर्दन और कंधे तनाव मुक्त होने चाहिएं, हाथ गोद में – दाएं के ऊपर बायां और हथेलियां आकाश की ओर । आंखें मूंद लें या उनसे नाक की चोंच की तरफ़ देखें । मेरी सलाह है कि यदि फ़र्श पर बैठना हो तो एक गद्दी पर बैठें । इससे सीधे बैठने में आसानी होगी और शरीर अवपात नहीं करेगा ।
शुरू में, अपने श्वास को नथिनी के अंदर जाने और बाहर निकलने पर ध्यान दें । अंदर आते हुए श्वास पर ध्यान दें, फिर देखें कि श्वासन के अंत के बाद एक विराम के बाद निश्वासन आरंभ होता है । निश्वासन की ओर ध्यान दें और देखें फिर एक विराम आने के बाद ही अगला श्वासन आरंभ होता है । इस तरह अपने श्वासन की प्रतिक्रिया का अध्ययन करें । इस प्रतिक्रिया को बदलने का प्रयत्न मत करें । अपनी प्राक्रितिक विधि से श्वासन करते रहें । अभ्यास के बाद इस विधि में स्वयं ही परिवर्तन होने लगेगा ।
शुरू शुरू में श्वासन की जागरुकता का अनुरक्षन करना कठिन लग सकता है । मन भटक जाता है और हर तरह के विचार आते रहते हैं । मन के भटकने का ध्यान रखें और इसका पता लगने पर शीघ्र ही कोमलता से किंतु दृड़ हो कर श्वासन की ओर ध्यान दें । मन में आने वाले विचारों को समझने का प्रयत्न मत करें, बल्कि उनकी ओर सामान्य अपक्षपात रहें और कर्मठतापूर्वक श्वसन पर ध्यान देने के लिए लौटें । एक अनासक्त विवेचक की तरह जानकार और सतर्क रहें ।
सहनशीलता से अभ्यास करते रहें
अच्छा रहेगा कि शुरू में केवल 10 या 20 मिनट की अवधि के लिए अभ्यास करें, दिन में एक या दो बार । एक शांत स्थान ढूंढिए जहां आप मैडिटेट कर सकें, और इसके लिए दिन का एक ऐसा समय जिसे आप नियनित दिन प्रतिदिन कर सकें । अभ्यास के लिए अविरुद्ध होना और नियमित रहना दोनो महत्वपूर्ण हैं । कठिनाइयों के अनुभव से हितोत्साहित मत होएं, धीरता और सहनशीलता से अभ्यास करते रहें । अभ्यास के साथ साथ आपकी मैडिटेट करने की क्षमता बढ़ती जाएगी, मन निश्चल और शांत होता जाएगा और मैडिटेशन का महत्व समझ आ जाएगा । महात्मा बुद्ध कहते थे, “जैसे एक धीमे स्रोत से निकली छोटी छोटी बूंदों से एक घड़ा भरता है, वैसे ही एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को धीरे धीरे निखारता है ।”