ककून बनने की प्रतीक्षा में झींगा
एक महान रहस्य हर स्थान और हर वस्तु में रहता है । यह दोनो तरह प्रकट होता है – सूक्षम दरारों में और उस विश्व के विशाल में जहां हम रहते हैं । ककून बनने की प्रतीक्षा में झींगा एक अनजानी मंज़िल की ओर रेंगता है । फिर भी, पेड़ के तने में रेंगता हुआ झींगा सम्पूर्ण होता है । इस प्रकार झींगा, भविश्य में तितली के रूप में परिवर्तित हो जाता है । यह रुचिकर है कि झींगे की वर्तमान अवस्था और तितली बनने के भविश्य की सच्चाई दोनो साथ साथ ही रहते हैं ।
आत्मिक स्वर्ग
हमारे लिए त्रिलोक का स्वर्ग, उसी स्वर्ग की प्रतिमा है जो हमारे मन दर्पण से दिन-प्रतिदिन प्रतीत होती है । इस आत्मिक स्वर्ग की पहचान मन के चिंतारहित होने पर ही की जा सकती है; जैसे बादलों के बिछड़ने पर ही आकाश साफ़ होता है । विचारों के मध्य रिक्त समय में, हम स्पश्टता का सम्पूर्ण अनुभव कर सकते हैं, और महान रहस्य यही है कि मन को आगे बढ़ाना और हर दिशा में पूर्ण स्पश्टता से देखना । पर इस अचूक बुद्धिमत्ता के लिए अहं को ब्रह्मांड के असीमित सौंदर्य में समर्पित करना पड़ता है ।
सौंदर्य
सौंदर्य को पकड़ा नहीं जा सकता, और इसका अनुभव भी उन्हीं गिने-चुने लोगों को होता है, जिन के लिए यह अनुभूति आरक्षित है, और जो इसे पाने के उद्येश्य में महान त्याग करते हैं । कई अवसरों पर सौंदर्य हमारे पास होता है ताकि हम उसे अपनी अनुभूति के लिए पक्की तरह पकड़ लें, और फिर उसे स्वतंत्र करने के लिए छोड़ भी दें । यदि हम संसार को समानता के भाव से देखें तो ऐसा उच्चतम सौंदर्य हमारे अनुभव के लिए निरंतर सर्वव्यापी है । यही महान रहस्य है, प्रसन्नता से अहं का पूर्ण समर्पण और मूलभूत रूप से जीवन में निरन्तर एकत्व ।