प्रेममय दयालुता का विकास

संवेदशीलता एक सदगुण है  

           कुछ हद तक लगभग हम सभी चाहते हैं कि हम प्रेममय और संवेदनाशील  बने ।  संवेदशीलता एक ऐसा सदगुण है जिसको पहले बीज बो कर फिर इसे धैर्ययुक्त सच्चे प्रयत्न के साथ विकसित करना पड़ता है ।  यह महत्वपूर्ण है कि हम संवेदन केवल अपने परिजनों और मित्रों के साथ ही सीमित न रखें, पर उनके लिए भी जिनके बारे में हम नकारात्मक मनोभावना रखते हैं ।  कि गौतम बुद्ध , लाओ त्ज़ू और ईसा मसीह जैसे ऐतिहासिक  धार्मिक गुरुओं ने सर्वगत प्रेम  के मनोभाव का समर्थन किया है । मैत्ता सट्टा, दा बुद्धाज़ डिस्कोर्स औन लव ऐंड काइंड्नैस में लिखा है, “जैसे एक माता अपने शिशु को, अपनी अकेली संतान को असीमित ममता से संरक्षित करती है, वैसे ही हर जीव को अपनी आंखों का तारा समझें  ।”

  मैत्ता भावना

           मैत्ता भावना मैडिटेशन की एक रमणीय विधि है जो  सर्वगत प्रेम और संवेदनशीलता उत्पन्न करती है । मैत्ता भावना का पाली से यथाशब्द अनुवाद है “प्रेममय दयालुता को उपजाना” । मैत्ता भावना का अभ्यास आरंभ करने से पहले एक शांत स्थान ढूंढें जहां आप आंखें बंद करके बैठ सकें । अपने  श्वासन की ओर ध्यान देने से शुरू करें । श्वास  को अपनी नथिनी से अंदर जाने और बाहर निकलने की ओर ध्यान करें । अब दृष्टिगोचर बनाएं कि आप आनंदमय दिशा में हैं और मन ही मन में दोहराते जाएं “मुझे प्रसन्नता हो” ।  इस क्रिया से हम अपने को प्रेम और मित्रभाव की कामना कर रहे हैं । यह स्वयं को प्रेम और  शक्ति देना ही मैत्ता भावना का मूल सिद्धांत है । क्योंकि एक व्यक्ति स्वयं को प्रेम कर के ही दूसरों को इस भावना से देख सकता है ।

मैत्ता भावना की प्रचलित धारा प्रवाह

         अब किसी प्यारे व्यक्ति, जैसे कोई घनिष्ट परिजन, को ऐसे प्रेम और मित्रभाव के लिए सोचो । मैत्ता भावना की प्रचलित धारा प्रवाह है पित्रिगण, शिशु, बंधु या जीवन साथी ।  दृष्टिगोचर बनाएं कि वह आनंदमय दिशा में हैं और मन ही मन में दोहराते जाएं “वह (उनका नाम लेकर) प्रसन्न हो”  । मैत्ता भावना के धारा प्रवाह के लिए अब मन ही मन में किसी और नज़दीकी रिश्तेदार के लिए प्रेम और मित्रभाव का संदेश भेजें । यह संदेश अपने कई प्यारे मित्रों और परिजनो के भेजें ।

           अगला कदम है इसी भावना से उन लोगों को भेजना जिनकी ओर आप का रवैया निष्पक्ष हो । यह व्यक्ति आपका डाकिया, दुकानदार और कोई भी हो सकता है जिससे आप के मन में न कोई वैर हो और न ही कोई स्नेह । दृष्टिगोचर बनाएं कि वह आनंदमय दिशा में हैं और मन ही मन में दोहराते जाएं “वह (उनका नाम लेकर) प्रसन्न हो”  । इस क्रिया का अभ्यास  ऐसे कई व्यक्तियों को मन में रख कर करें ।

            ऐसा लहराव निष्पक्ष वर्गजन को भेजने के पश्चात, अगला कदम है इसी क्रिया को उन लोगों  के लिए दोहराना जिन के बारे में आपकी नकारात्मक मनोभावना हो जैसे कि क्रोध, ईर्शा या नफ़रत । दृष्टिगोचर बनाएं कि वह आनंदमय दिशा में हैं और मन ही मन में दोहराते जाएं “वह (उनका नाम लेकर) प्रसन्न हो”  । इस क्रिया का अभ्यास  ऐसे कई व्यक्तियों को मन में रख कर करें । वही प्रेम और शुभचिंता की मांग उन लोगों के लिए कर के जिनके लिए वह एक नकारात्मक मनोभावना  रखता हो, एक मैत्ता का अभ्यास करने वाला सर्वगत प्रेम और संवेदनशीलता की ओर जाता है । अब वैसी ही सत्य शक्ति अपने मैडिटेशन गुरू को दें जिसनें आप को मैत्ता भावना का अद्भुत अभ्यास सिखाया है और इस घटनाचक्र को संपूर्ण करते हुए फिर स्वयं को  इस अभ्यास में सफ़ल होने के लिए भी । अंत में मन ही मन में कई बार  दोहराएं कि “सब प्रसन्न हों” । अपने धीमें से श्वासन को कुछ देर ध्यान दे कर इस अभ्यास की घटनाचक्र की इतिश्री करें ।

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