अतिथिग्रह
मेरे अतिथिग्रह में कई मिलने वाले आते हैं । आते समय कभी वे लोग जोश या गुस्से में होते हैं, कभी ख़ुश और कभी परेशान; वे लोग कभी हंसते हुए आते हैं और कभी चिल्लाते हुए, कभी गाते हुए और कभी रोते हुए । मैं तो उनका स्वागत मुस्कराते हुए ही करता हूं चाहे वे लोग जिस भी भाव में आयें । मैं उनका स्वागत शिश्टाचार, प्रसन्नता और समानता के भाव से करता हूं । मैं उनसे निवेदन करता हूं कि जब तक चाहें वे रह सकते हैं, और जब भी उनकी इच्छा हो, वे जा भी सकते हैं ।
कई बार मेरे पाहुन थोड़ी सी देर तक बैठते हैं, मैं उनकी बातों को ध्यान से सुनता हूं; वे लोग जो भी वार्तालाप करना चाहें, मैं आराम से सुनता हूं, और तब तक सुनता रहता हूं जब तक उनकी बात समाप्त नहीं हो जाती । मेरा अतिथिग्रह छोड़ने के बाद ये पाहुन कहां जाते हैं, यह मुझे नहीं पता । न हीं मुझे पता होता है कि वे कहां से आए थे । मैं तो यही जानता हूं कि मेरे अतिथिग्रह में पधारने पर उन्हें प्रेम और स्वीक्रिति मिलती है ।
जब पाहुन नहीं होते
जब मेरा अतिथिग्रह खाली होता है तब मैं अपने जीवन के हर्ष का आनंद लेता हूं । जब पाहुन नहीं होते, मैं उस रिक्त घड़ी की शांती और इस पवित्र स्थान में रहने का पूरा मजा लेता हूं । मैं आनंदमय रहता हूं और धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करता हूं कि किसी भेंट करने वाले की जीवन यात्रा मेरे मनरूपी अतिथिग्रह की ओर लाएगी ।