गणित और गूढ़ ज्ञान का सेतुबंधन

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गूढ़ ज्ञान और गणित

          आदिकाल से ही गूढ़ ज्ञान और गणित कंधे से कंधा मिला कर चलते रहे हैं । प्रायः सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ गूढ़ ज्ञान में  दृढ़ विश्वास रखते थे । उदाहरण हैं पाइथागोरस, लीब्निज़, फ़ोरियर, लाप्लास, पास्कल, कैप्लर, टोलेमी, युक्लिड, प्लाटो और गोडल । लगभग सभी  लोगों को गूढ़ ज्ञान   तंत्र-मंत्र या जादू-टोने की याद दिलाता है । सरलता से ना दिखने वाली समस्याओं या उनके हलों को अपने व्यक्तिनिष्ठ बोधात्मक  अनुभव के कारण देखने की क्षमता भी गूढ़ ज्ञान है ।

गूढ़ ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण शिक्ष

        वास्तव में गूढ़ ज्ञान  की प्रथा किसी  दर्शन मार्ग के अनुसार नहीं चलती, बल्कि यह तो व्यक्तिगत बोध से ईश्वर की पहचान पर निर्भर करता है । गूढ़ ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण शिक्षण वास्तबिकता एक ही है । हर काल के गूढ़ ज्ञानियों के अनुसार ज्ञानोदय का मार्ग सदैव मैडिटेशन से हो कर जाता है । इस अभ्यास से हम सम्मिलित हो सकते हैं ब्रह्माण्डीय  बुद्धि से जो सर्वव्यापक है, यह लोकप्रिय विश्वास के विपरीत है कि बुद्धि केवल मानसिक ही होती है ।

ब्रम्हांड बुद्धि को प्रतक्ष रूप से अनुभव करने के लिए विधि 

बीसवीं शताब्दी के गणितज्ञ कर्ट गोडल ने ब्रम्हांड बुद्धि को प्रतक्ष रूप से अनुभव करने के लिए यह विधि बताई है ।  उनका कहना है कि सर्वप्रथम आवश्यक है कि अपनी सब इंद्रियों को बंद कर दो ।  वह इस बात को ज़ोर देकर कहते हैं कि दैनिक वास्तविकता पर निर्भर दशाओं से संभावनाओं को सोचना अनुचित है । अपने अनुभव वाली वस्तुओं के संचय और क्रम संचय पर सीमित मत रहो ।  सारी इंद्रिओं को बंद करने के पश्चात ही साविध को पीछे छोड़कर अपरिमित की ओर जाया जा सकता है । गोडल का दावा है कि दर्शनशास्त्र का अंतिम लक्ष्य है परम तत्व की अनुभूति ।  ऐसे अभ्यास से, प्राक्रितिक वास्तविकता को छोड़ कर प्रभु के क्षेत्र में जाना संभव है, जहां अधर और समय बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं और सबकुछ एक हो जाता है  । ऐसी दशा केवल अंतर्दृष्टि से ही मिलती है, तर्क वितर्क से नहीं ।

गूढ़ ज्ञान के चार मुख्य गुण 

बर्टरैंड रस्सल का कथन है कि गूढ़ ज्ञान के चार मुख्य गुण हैं:

(i) अंतर्दृष्टि एक साक्षात जानकारी का मार्ग है: डेविड सुज़ूकी इस विश्व की जानकारी के मार्ग को प्रज्ञा कहता है । इस जानकारी कि विधि को न तो सिखाया जा सकता है और न ही इस पर तर्क वितर्क किया जा सकता है । बल्कि विश्व के एकत्व की पकड़ हो जाने पर इसे सूच्य किया जाता है ।

(ii) सब वस्तुओं के एकत्व का विश्वास:  दूसरे शब्दों में अस्वीक्रिति कि विश्व में कहीं भी कोई खंड या विपक्ष है । इतहास में कई गूढ़ज्ञानी कह चुके हैं की वास्तविकता केवल ब्रम्हांड का एक नृत्य मात्र है । हिन्दू धर्म में वस्तुओं के रूप के अलगाव के भ्रम  को माया कहते हैं, इस पर्दे को भेदने से ही यह भ्रम  हटता है और ब्रम्हांड की एकता की अनुभूति होती है ।

           (iii) सब दुष्टता प्रकटनमात्र है: यह मन के विश्लेषन से पैदा हुए खंड और विपक्ष का एक भ्रम  है ।  ब्रम्हांडबुद्धि से एकत्व के पश्चात दुष्टता नाम का कुछ रह ही नहीं जाता, हमारा  इंद्रिय अलगाव इस भ्रम  की अनुमति देता है । गूढ़ ज्ञान निर्दयता और अच्छाई  जैसे भाव नहीं रहने देता, बल्कि वह तो इन भावों की मनाई करता है, इनका स्थान तो विश्व की कम गहराइयों में होता है,  इस दृष्टि से छुटकारा मिल चुका होता है । इस पूर्ण प्रकाश में गूढ़ ज्ञान का  दिव्य दर्शन जीवित रहता है, क्यों कि उसमें वह ज्ञान होता है जिसके सामने दूसरे ज्ञान नादान रह जाते हैं ।

            (iv) समय की वास्तविकता की अस्वीक्रिति: समय का महत्व केवल सैद्धांतिक है, क्यों कि इसका अस्तित्व हमारी इच्छा के अनुसार होता है न की सत्य के ज्ञान के में । यद्यपि समय हमें वास्तविक लगता है क्यों कि यह हमारी विचारधारा और अनुभूति का भाग बन चुका है, इसकी महत्वहीनता को जान लेना बौद्ध का एक द्वार है । सचमुच, यह विचारधारा जो गूढ़ ज्ञानियों को प्राचीन काल से पता थी, पर यह आइन्स्टाइन के   सापेक्षता सिद्धांत के प्रकाशित होने के बाद ही लोकप्रिय हुई है  । सापेक्षता सिद्धांत विशेषांक के अनुसार जब एक अणु ज्योति की गति से चलने लगता है, समय धीरे हो जाता है । लगभग सभी प्रक्रितिशास्त्रियों की  स्वीकृति है कि यदि एक अंतरिक्ष यात्री किसी दूर के सितारे की ओर ज्योतिगति से जाकर वापिस आता है तो वह धरती पर सहस्रों वर्ष सैद्धांतिक भविष्य में पहुंचेगा । ज्योतिगती यात्री के लिए समय रुक जाता है, यानि वह यात्री एक ही पल में फसा रहता है ।

आजकल का अनुभाग है कि टैक्यान – ज्योति गति से तेज़ चलने वाला अणु होता है । सापेक्षता सिद्धांत अब कोई निस्तार नहीं देता कि  ज्योति गति से कई गुणा गति पर चलने वाले, किसी भी अणु  के लिए समय उल्टे चलेगा । टैक्यान की वास्तिकता के अनंत निहितार्थ हैं जैसे की एक डिलिर्यान भी पाया जाएगा  भविष्य में, या कहें कि भूतकाल में । ऐसा मौलिक आविष्कार गूढ़ ज्ञान और गणित में सर्वश्रेष्ठ सेतुबंध होगा ।

पाइथागोरस

          इतिहास में कई महान लोगों ने गूढ़ ज्ञान और गणित का संगठन किया है । शायद उनमें से किसी का भी दर्जा पाइथागोरस से ऊंचा नहीं है । एक ही समय में वह इंद्रजालिक,  गणित का अनुप्रतीक   और पाइथेगोरियन संप्रदाय का स्थापक था । यह संप्रदाय गणित और दर्शन शास्त्र में लगा रहता था, और इनके काम को आधुनिक प्रक्रितिशास्त्र के जन्म का श्रेय दिया जाता है । यद्यपि उन्हों ने  उच्च श्रेणी के गणित में महत्वपूर्ण उन्नती की, उन्हें पुनर्जन्म के जड़सूत्र के लिए भी जाना जाता है ।

कहा जाता है कि पाइथागोरस को पिछले जन्मों की वाले जीवन याद के साथ साथ और भी कई अलौकिक शक्तियां थी । पाइथागोरियन संप्रदाय का विश्वास था कि ब्रम्हांड में एक ही बुद्धि और आत्मा है, जिसके एक टुकड़े के उनके जिस्म अटक जाने के कारण वह जीवित थे, और वही एक टुकड़ा एक देह को अनुप्राणित करता है, और दूसरी देहों को भी जीवित करता रहेगा जब तक ब्रम्हांड की आत्मा से संगठन नहीं कर लेता ।

      पाइथागोरियन संप्रदाय के लोग कई नियमों और पाबंधियों के अनुसार चलते थे  ताकि वह ब्रम्हांड संगति के पास आ सकें । उन नियमों में थे विशुद्ध शाकाहारी भोजन और अपनी शिक्षा को सदैव मुफ़्त में देना । उनकी सोच थी कि यदि उनकी आत्मा ब्रम्हांड के समीप रही तो किसी दिन वह उसमें मिल जाएगी बजाए इसके कि उनका फिर से पुनर्जन्म हो ।

प्लैटो

अपने  गुरू सोक्रेटिज़ के निधन के बाद बालक प्लैटो ने भी पाइथागोरियन स्कूल में ही सीखा था ।   पाइथागोरस के तरह प्लैटो ने भी अंकगणित और रेखागणित के अध्ययन में ब्रम्हांड की ताली खोजने का प्रयास किया था । ईश्वर का व्यवसाय पूछने पर प्लैटो ने कहा, “वह निरंतर रेखाएं बनाता रहता है” ।

वास्तविकता में, प्लैटो का विश्वास था की रेखागणित के सामान्य ज्ञान हो जाने पर इसकी अच्छाई भुला दी जाती है और इसे छोड़ दिया जाता है यदि वह वायव्य चित्रन  की सोच न बन सके, जो सोच ईश्वर चाहता है, और इसी लिए वह ईश्वर है । प्लैटो की सोच यह भी थी कि रेखागणित का अध्ययन दर्शन शास्त्र सीखने के लिए आवश्यक था । उसने यह भी देखा था कि रेखागणित का अध्ययन एक व्यक्ति को उचित और ओजपूर्ण सोचने में प्ररिक्षित करता था । उसने अपने बरामदे में यह शिलालेख रखा हुआ था, “कोई भी रेखागणित को न जानने वाला अंदर न आए” ।

गूढ़ ज्ञानी गणितज्ञों का कठोर विरोध

पिछले 500 वर्षो में गूढ़ ज्ञानी गणितज्ञों को कठोर विरोध का सामना करना पड़ा । आधुनिक गूढ़ ज्ञान के संशयवादियों की संख्या गणितज्ञों में बहुत बड़ी है । फिर भी, बीसवीं सदी के गूढ़ ज्ञानियों की गणना में आते हैं गोडल और आइन्स्टाइन: उनके कार्यसम्पादन उनकी अलौकिक शक्ति के उदाहरण हैं । वैज्ञानिक संप्रदाय के संशय होने पर भी, सच तो यह है कि गूढ़ ज्ञान और गणित का साथ साथ चलना, ब्रम्हांड को समझने के लिए आवश्यक है ।

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