निर्मलता की वापसी

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मैं समुद्रों, धरती और सब मानवों से बाद तक भी अनन्त रहूंगा

“मुझे याद आती है अपनी किशोरावस्था की, और उस भावना की जो फिर कभी न लौटेगी – कि मैं समुद्रों, धरती और सब मानवों से बाद तक भी अनन्त रहूंगा;  यह प्रवंचक भावना जो हमें मरने तक खींचती है ख़ुशियों, संकेटों, प्रेम और व्यर्थ के प्रयत्नों की तरफ़ ।”  जोसफ़ कॉनरेड

जैसे कि महान बीटल जॉर्ज हैरिसन ने एक बार कहा था, “हर वस्तु का अन्त होता है, केवल समय की बात है कि हमारे महान से महान और सर्वप्रिय परिवर्तन भी समाप्त हो जाते हैं ।”  मुझे याद है जब मैनें  निजी रूप से इस भावना की अनुभूती की थी कि कभी न कभी  हर  आत्मा अपने अनन्य​ और पवित्र मार्ग की ओर प्रस्थान करती है ।

यौवन रूपी फूल

मेरा यौवन रूपी फूल एक मधुर धर्ती पर खिला था ।    हमारा परिवार एक मध्य वर्ग के पड़ौस  में रहता था । यद्यपि हम धार्मिक तो नहीं थे, पर मै और मेरा भाई अत्यंत सत्चरित्र की मत से पाले गये थे । इस सत्चरित्र की मत ने ही मेरे बचपन में हमारे परिवार को संयम दिया था ।

मेरी कहानी तब से आरम्भ होती है जब मैं दस वर्ष का था । स्वर्ग में एक झरने से बर्फ़ धीमे धीमे  गिर रही थी, जैसे भावुक पोस्टकार्डों में दिखाया जाता है ।  मैं और मेरा मित्र नील स्कूल से चल कर घर वापिस आ रहे थे । मेरे मित्र ने जेब में से एक हब्बा बब्बा का टुकड़ा निकाल कर पकड़ाया । उन दिनों ह्ब्बा बब्बा चूइंग गमों में इतनी ही कीमती थी जितनी कि गाड़ियों में रोल्ज़ रॉएस की ।  मैं कदाचित नहीं भूलूंगा जो मेरे हब्बा बब्बा मुह में डालने पर उसने एकदम कहा, “सोच सकता है ?  यह पैक चोरी का माल है ।”

मुझे घ्रिणा भाव ने घेर लिया । मैं गम को पटरी पर थूकने वाला था, एकदम वहीं पर । किन्तु मैनें कुछ नहीं कहा ।  मेरे दुर्बल पक्ष नें मुझे जकड़ लिया गया था, मेरे ईमान के भाव को ठोस लगी थी, और अब मैं इस मित्र की ओर देख भी नहीं सकता था ।  मुझे इस अदार व्यक्ति के मित्र होने से भी घ्रिणा होने लगी । मैं एक सहापराधी बन गया था, एक चोर, एक भ्रिश्ट आतमा जो नर्क में जलेगी, जिसका पुनर्ज्नम एक चिम्पान्ज़ी या जंगली कुत्ते के रूप में होगा, और फिर वह आवारा हो कर भस्म होती रहेगी । मैं अन्तर्मुखी हो कर घर गया, कुछ खा भी नहीं सका, अपने भाई से खेलने का मन भी नहीं किया, माता पिता को कहा कि सोने का दिल है, और बिस्तर पर लेट गया ।

घ्रिणा की भावना  आश्चर्य में बदल गई

सोने पर मेरी नील की ओर घ्रिणा की भावना धीरे धीरे आश्चर्य में बदल गई । वह दुकान में गया था, और उसने एक पैक गम का चुराया था । वह दुकान से एक ह्ब्बा बब्बा का बेमूल्य पैक ही ले आया था, उसने कुछ भी व्यय नहीं किया था, कोई भी पैसे नहीं दिये थे । उसे यह गम मुफ़्त में मिल गई क्यों कि वह यह चाहता था । जैसे ही मेरी नींद गहरी हुई, यह भावना बढ़ी, और इस नें मेरे पहले वाली घ्रिणा भाव को बिल्कुल उड़ा दिया ।

एक सप्ताह बीत गया, नील हर समय मेरी सोच में रहता था, स्कूल में भी मेरी आंखें नील पर ही रहती थी । उसके मुख पर एक रहस्य भरी वीरता की मुस्कान थी, और वह सहपाठियों को चॉक्लेट या गम के पैक देता रहता था । लड़कियां उस की ओर मुस्करा कर खिंचती थी, और लड़के भी उस का आदर करते थे । वह हीरो था, हर स्थान पर स्कूल के बच्चों का समर्थक, नील रॉबिन हुड था, जो अमीरों से चुराता था और गरीबों में बांटता था ।

एक विशेष दिन मेरी याद में ऐसे अंकित हो गया है कि मैं शायद इसे कदाचित नहीं भूल पाऊंगा । उन दिनों, पांचवीं के हर लड़के की तरह, हाँ कम से कम वह लड़के जो अपनी बाल्यावस्था को पीछे छोड़ चुके थे, मैं श्रुती पर मरता था । पूरे स्कूल में श्रुती सब से सुन्दर थी, और मेरे लड़कपन के स्नेह का केन्द्र थी । स्कूल के बाद मैं कपड़े टांगनें वाले कमरे में नील की प्रतीक्षा कर रहा था, कि जब नील मुस्कराती हुइ श्रुती से बातें कर रहा था ।

मैं पांचवीं श्रेणी का रॉबिन हुड बनना चाहता था

हमारे जाने के लिये, निकलने  से  पहले श्रुती झुकी और उसने नील के गाल पार एक लम्बा सा चुम्मा मारा । मेरा ह्रिदय मेरी छाती में गिर गया । मैं ईर्श्या से इतना भरपूर्ण था कि घर जाते हुए मैने नील से बात तक न की । मैं भी एक रह्स्यपूर्ण मुस्कराते हुए चेहरे को ले कर चलना चाहता था, मैं पांचवीं श्रेणी का रॉबिन हुड बनना चाहता था, मेरी इच्छा थी कि श्रुती मुझे चूमे । संक्षिप्त रूप में, मैं इस पहचान का ही शिकार हो गया था, मैं नील बनना चाहता था ।

घर लौटते समय​, नील खिसक गया, एक तंग रास्ते में, जो हमारे पड़ौस की गलियों के बीच बना हुआ था । हिचकचाते हुए मैं भी पीछे पीछे चला गया यद्यपि मेरे माता पिता नें ऐसी जगाहों पर जाने से सख्त मना किया हुआ था ।  यदि मैं पकड़ा जाता तो मुझे कम से कम एक सप्ताह के लिये घर से निकलने से मनाही की सजा हो जाती । किन्तु मैं नील के सामने डरपोकी नहीं दिखाना चाहता था, असतर्क होने की सम्भावना भी न थी, अतः हम चलते गये ।

तंग गली में आधा रास्ता चल कर नील रुका और उसने अपनी पीठ से थैला उतार कर नीचे रख दिया । उसने थैले से निकाल कर एक चॉकलेट की पॅटी मुझे दी । मैने खुले थैले में झांका, औए देखा कि इसके भीतर से कम से कम एक दर्जन चॉकलेट की पॅटियां और उतने ही बब्बल गम के पैक मेरे पर ताना मार रहे थे । एक ही स्थान पर, ऐसे इनाम का इतना बड़ा ढेर मैने पहली ही बार देखा था । हक्का बक्का हो कर मैने पुछा,”क्या तूने…तूने, चुराया है…सारे का सारा ?”

कौन सी बड़ी बात हो गई

“हां, पर तू तो ऐसे कह रहा है जैसे मैने कोई अनुचित काम किया हो, मुझे लग तो ऐसा ही रहा है”, उसने उत्तर दिया । “दुकान में इतने सारे चॉकलेट हैं और इतने सारे बब्बल गम के पैक, तो मैने कुछ ले लिये, कौन सी बड़ी बात हो गई ?”

उसके वाक्यों से अधिक, वह प्रताप जो उसके कहने में था, आज तक मेरे अंदर घुसा हुआ है । सांझ को मैं प्रसन्नतापूर्ण घर लौटा, निद्रा भी मुझे शीघ्र और सरलता से आ गई, मुझे इस ऐब के पूर्णविश्वास ने जकड़ लिया, प्रातः इसे करने का मेरा पक्का इरादा था ।

मैं भी अपराधी बन गया

सुबह ठंड थी । मैं लगभग साढ़े आठ बजे – स्कूल के शुरू होने से आधा घंटा पहले, कर्याने की दुकान की ओर चला गया  ।  जब मैं दुकान के अन्दर पहुंचा  वहां क​ई ग्राहक थे । एक मोटी सी महिला नकदखाते का काम कर रही थी । मैं भयभीत भाव में कॉमिक बुक के विभाग में गया और वहां किताबों के संग्रह को देखने लगा – बैटमैन, सुपरमैन, वन्डर वुमन, ग्रीन हॉर्नेट – किन्तु मेरी सोच तो कहीं और ही थी । फिर मैं धीरे से कैन्डियों के विभाग में चहल गया ।

नकदखाने वाली महिला एक पत्रिका पढ़ रही थी, और उसका मेरी ओर बिल्कुल भी ध्यान न था । मैं खरीद तो सकता था, पर मुझे चोरी करनी थी, मेरे माता पिता मुझे अच्छी खासी जेबखर्ची देते थे जिसे मैं कदाचित कॉमिकों और बेस बाल कार्डों में ही ख़र्च करता था । मेरे पास पैसे तो थे, पर आज एक अलग ही तरह का दिन था, आज मैं कुछ भी नहीं खरीदना चाहता था । मेरी किस्मत जैसे एक पत्थर की लकीर बन चुकी थी । मैने एक बार उस महिला कि ओर झांका, वह सेवन्टीन पत्रिका के अन्तिम प्रकाशन में ही व्यस्थ थी ।

मेरा हाथ चैरी की हब्बा बब्बा की ओर बढ़ा; जैसे स्वयं ही, उसने गम के पैक को मेरे कोट की बाजू के साथ खिस्का दिया ।  मेरी भागने की इच्छा हुई । क्या कर रहा था मैं ?  एक सूक्षम पल के लिये तो जैसे मैं इस गम को बाजू से निकाल कर लौटाने वाला था, इसके सच्चे मालिक को – वह डिब्बा जिस में से मैने उसे निकाला था । मैं कैन्डियों के विभाग से निकला, और कोने से मुड़ कर मैं दरवाज़े की ओर चला । नकदखाने वाली महिला ने मेरी ओर देखा और हमारी नज़रें एक पल के लिये मिलीं, इस पल की लम्बाई सदियों में थी । वह जानती थी की मैं चोर था, उसने मुझे गम के पैक को आस्तीन में खिसकाते हुए देखा था, और आस्तीन से ऊपर​ फिर कोट में ।  वह जानती थी कि मैं अपराधी था ।  उसने मुस्कराते हुए सिर हिलाया, और मुझे अभिवेदन किया कि मेरा बाकी का दिन प्रसन्नतापूर्व रहे । मैं एक शब्द भी नहीं बोल पाया । मैं मुस्कराया तक भी नहीं । जब मैं दुकान से निकला तो मेरे चेहरे को भयभीत भाव ने जकड़ा हुआ था ।

स्कूल के मैदान में सुरक्षित पहुंच कर, मैने उस दूशित गम का एक टुकड़ा अपने मुह में डाला । मेरी हर चबान दोष और शर्म से भरी थी ।  अब मैं भी एक चरित्रहीन व्यक्ति बन गया था जिसकी आत्मा भ्रिश्ट हो चुकी थी । मैने अपने माता पिता को अस्वीकार कर लिया था, और उस सब को भी जो पवित्र था; मैने उस दीन की गांठ को तोड़ा डाला था जिस पर हमारा परिवार आश्रित था ।  अब मैं अपने माता, पिता या भाई की बुद्धिमान और प्रसन्न दुनियां में शामिल नहीं था । अब मैं एक नीचे के स्तर की दुनियां में चला गया था, चोरों और अपराधियों वाली । किन्तु मेरी शर्म में मेरे अंधेरे दिल कि एक झरोखे में एक प्रवंचक प्रसन्नता मिल ग​ई, जिसके कारण मैं स्वयं को अपने माता पिता और उनकी दुनियां से ऊंचा समझने लगा । इन मनोभावों के संघर्श में एक डर ने मुझे घेर लिया; हर हाल में मेरे माता पिता मेरी आंखों मे भरी हुई इस दोष भावना को जान जाएंगे, उन्हें मेरे अपराधी होने का पता चल जाएगा । मेरे अध्यापक जान जाएंगे, स्कूल के सब विद्यार्थियों को पता चल जाएगा, नील को भी, श्रुती को भी, बिल्कुल, सब को पता चल जाएगा ।

प्रिंसिपल साहिब मुझे अपने दफ़्तर में बुलाएंगे, और मुझे स्कूल से निकालने का निर्णय सुनाया जाएगा । मेरे माता पिता मुझे एक सैनिक स्कूल में भेज देंगे । पक्का था, कि अब तो मेरा जीवन बर्बाद हो जाएगा । मेरे चेहरे की फ़ोटो हर अख़बार के पहले पन्ने पर आएगी, “दस वर्ष की आयु के चोर को सैनिक स्कूल में भेजा गया ।”

रात होने पर शैतान मेरी नींद का आतंकवादी बन जाता था

ऐसा कुछ तो हुआ ही नहीं, दिनचर्या चलती रही, लगभग पहले की तरह ही । किन्तु अब मैं जहां भी जाता था, यह अन्तरभावना मेरे साथ रहती थी । दिन के समय यह एक डरावनी छाया बन जाती थी, और रात होने पर शैतान मेरी नींद का आतंकवादी बन जाता था । मेरा दिल करता था कि मर जाऊं, एक दम और वहीं । मैं एक दयालू फ़रिश्ते की प्रतीक्षा करता रहा, मेरी नियोजित भेंटों की कापी उसके लिये बिल्कुल तैयार थी । किन्तु मुझे ज्ञान था कि मैं कभी न कभी इस शर्म और दोष की भावना को पीछे छोड़ दूंगा । मैं जानता था कि पश्चाताप करने पर मुझे क्षमा मिल जाएगी, और मुझे यह भी पता था कि मैं स्वयं को माफ़ कर दूंगा, क्यों कि अन्त में यही माफ़ी सबसे महत्वपूर्ण थी ।

क्या यह अपराध क्षमा हो जाएगा

जब मेरी आत्मा सन्तुश्ट हो जाएगी, और मैं स्वयं से अपनी क्रियाओं का समझौता कर लूंगा, फिर से मैं मुस्कराने लगूंगा, मेरी निर्मलता का कम से कम कुछ भाग तो लौट आएगा । किन्तु, अब यह भाव पहली की तरह नहीं रहेगा । मैने मनाही वाले फल का स्वाद चख लिया था, और उसे पसंद भी किया था । मेरी सोच में रहता था कि मैं फिर कभी चोरी करूंगा, जिस के कारण मैं दौबारा से चरित्रहीनता की रेखा का उल्लंघन करूंगा, शायद पहले से  भी बढ़ कर ।

मेरे बचपन का आइना चकनाचूर हो चुका था । मैं अंदर से खोखला था, एक भाव जिसको मैं भविश्य में वर्षों तक पहचानता रहूंगा । जैसे जॉर्ज ने कहा था,”सब कुछ बीत जाता है”, लहरें चढ़ती हैं और उतर जाती हैं, मौसम अनंत ही बदलते रहते हैं, यह सब और हमारे जीवन की ऋतुएं भी किमीयागर स्वामी पर छोड़ी जाती हैं । मेरी किशोरावस्था की बसन्त ज्यादा ही जल्दी गुजर ग​ई, पर जाते हुए पतझ​ड़ की हवा के झोंखे पर एक महक छोड़ ग​ई । पर बसंत में फिर से फूल खिलंगे । वायु में नई नई महकों का व्यास होगा, शुद्दी लौटेगी, और सब क्षमा कर दिया जाएगा ।

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