“हज़ार मील की यात्रा एक कदम से शुरू होती है “- लाओ ट्ज़ू ।
टाओइज़्म का जन्म चीन में हान दूसरी ईसापूर्व सदी में राजवंश के काल में हुआ था – कंफ़ूसियसिज़्म की प्रबल मान्यताओं के विरोध में । टाओइज़्म की मनोहर दीक्षाएं परंपराविपरीति का मूर्त रूप हैं । टाओ का यथाशब्द अर्थ है “मार्ग” । टाओइज़्म का आधारभूत संग्रह टाओ टे चिंग इसी काल में लिखा गया था – और यह ॠषि लाओ ट्ज़ू का कार्य माना जाता है । लाओ ट्ज़ू के काल के थोड़ी ही देर बाद उभरा था चुआंग ट्ज़ू जिसे आधुनिक टाओइज़्म में दूसरा स्थान दिया जाता है ।
टाओइज़्म को परंपराविपरीति का दावा उचित ढंग से देने से पहले इस की व्यवहारिक परिभाषा सीखना होना अनिवार्य है । आज की प्रयुक्त भाषा में शब्द परंपराविपरीति सन 1960 में लाया गया था । मध्यम वर्ग के युवाओं के आंदोलन आम तौर पर प्रभावशाली संस्कृतियों पर सवाल उठाते हैं । यह शब्द ऐसे आंदोलनों के आविर्भाव की एक प्रतिकृया में बना था । प्रायः हमारी वर्तमान परंपराविपरीति की सोच समकालीन में ही होती है । टाओइज़्म का जन्म पुरातन चीन में परंपराविपरीति के भाव में ही हुआ था क्यों कि इसने कन्फ़ूसियस की प्रचलित संस्कृति मान्यताओं का सामना स्पष्ट रूप से किया । इन दो मतों का कठोर विरोध इस से स्पष्ट है कि कन्फ़ूसियस के सांसारिक और मानवीय चिंतन की अपेक्षा, टाओइज़्म दूसरी अनुभावतीत दुनियां और आत्मा पर ध्यान देता है ।
परंपराविपरीति के नीचे दिये हुए तीन प्रमुख सिद्धांत हैं:
(1) यह प्रचलित रीतियों और सरकारी प्रतिबंधों की की अपेक्षा व्यक्तिगत अधिकारों का बढ़ावा करती हैं,
(2) यह स्पष्ट या गुप्त रूप से सत्तावाद को ललकारती हैं,
(3) यह समाज में परिवरतनों का आलिंगन करती हैं ।
इस प्रासंगिक ढांचे के अनुसार, टाओइज़्म परंपराविपरीति के अर्थ का एक स्पष्ट उदाहरण है । यह पहला प्रमुख सिद्धांत टाओ के सारे साहित्य में प्रत्यक्ष्य है, और यह “टाओ ऑफ़ द वैस्ट” के लेखक जे जे क्लार्क के इस अनुगामी कथन से सर्वष्ठ रूप से प्रकट होता है । जे जे क्लार्क टाओ से पाता है, “निजी जीवन को चलाने के मान की राज्य सेवा से प्राथमिकता ।” यहां यह कहना आवश्यक है कि टाओइस्ट की व्यक्तिगत का रूप, एक विरोधित्स्वा के भाव से, स्वयं या अहं के आनंद से मुद्दा नहीं रखता, बल्कि सरल रूप से अपने रहन सहन को ऐसे रखने के मापदंड से जिस के कारण जीवन और प्रकृति में मेलताल रहे ।
दूसरा प्रमुख सिद्धांत जो टाओइस्ट के साहित्य में दृढ़ है, इस अनुगामी अनुच्छेद से सब से अच्छी तरह देखा जा सकता है: “विस्मय की इंदृय-शक्ति को जाने पर लोग धर्म की गोद लेते हैं । आत्मविश्वास खो जाने पर लोग सत्ता पर निर्भर हो जाते हैं ।” टाओइस्ट की मत में तीसरा और अंतिम सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक है, क्यों कि टाओइज़्म में परिवर्तनों का आलिंगन सर्वमुख्य है । यह सिद्ध होता है, इस लोकपृय शब्दावली “बहाव के साथ चलो” से, जो टाओइज़्म के सूत्र की साठवें दशक को एक भेंट थी ।
वू वेई
टाओ की पहचान हैं: एक अंगीकरण और समर्पण की ओर ढलाव, कलह और दबाव का न होना और एक तत्क्षण एवं प्रयत्नहीन जीवन की विधि । ऐसी क्रिया का सन्निकर्ष का अभिव्यक्त होता है कुछ भी न करना या केवल वही करना जो स्वाभाविक हो यानि अपने आप ही रास्ते में आ जाए । इस कार्यकारी की विधि को चीनी भाषा में कहते हैं वू वेई । वू वेई का हिंदी मे अनुवाद है कुछ भी न करना; किंतु बैंजामिन होफ़्फ़ ने इस सन्दर्भ में वू वेइ का सटीक अर्थ बताया है “किसी के, उकसाए या बनाए बिना ” । औपचारिक भाषा में वू वेई का अर्थ है बिना किसी हस्तक्षेप, जुझारू अथवा अहंवादी प्रयत्न का कार्य । वू वेई के प्राक्रितिक दशा होने की धारणा का होफ़्फ़ ने कुछ ऐसे वाग्विस्तार किया है: “वू वेई की कार्यक्षमता उस बहते पानी की तरह है जो अपना रास्ता चट्टानो के इर्द गिर्द बना लेता है न कि यांत्रिक प्राक्रितिक सिद्धांत पर तीव्र गति से नहीं चलता. जो सीधे ही चट्टानो के ऊपर से निकल जाए, यह कार्यक्षमता प्राक्रितिक ताल की आंतरिक संवेदनशीलता से उपज हुई है ।”
वू वेई की प्रयत्नहीन कार्यकारी की धारणा टाओइज़्म का मतभेद है कन्फ़ूसियसिज़्म से जो मानसिक विश्लेषणयुक्त प्रयत्न करने को कहती है ।
पीयू, एक तक्षहीन कुंदा
पीयू, एक तक्षहीन कुंदा, भी टाओइज़्म का एक और महत्वपूर्ण तत्व है । यह संकेत करता है कि हर वस्तु को उसकी असली हालत में ही देखना चाहिए । होफ़्फ़ के अनुसार इसकी व्याख्या है कि तक्षहीन कुंदे सिद्धांत के अनुसार “हर वस्तु अपने प्राक्रितिक सादगी में ही अधिक सामर्थ्यवान होती है, उसकी सादगी को हटाने से यह सामर्थ्य खो जाता है ।”
टाओइज़्म के सिद्धांत में पी यू अधिकतम महत्व रखता है, क्यों कि यह इस मत की नींव रखता है कि शून्यता जीवन की अधिकतम वांछनीय दशा है, और बुद्धिजीवी विचार सच के दर तक पहुचने में बाधा बनते हैं । इस शून्यता और स्पष्टता की व्याख्या होफ़्फ़ इस तरह देता है: यह महत्वपूर्ण है क्यों कि यह एक टाओवादी के स्थिर शांत परावर्तक आदर्श तक्षहीन कुंदे का प्रतिबिंब है ।
होफ़्फ़ ने निम्नलिखित परिच्छेद में एक उदाहरण से स्पष्ट किया है कि टाओ को छात्रवृत्ति या बुद्धि से नहीं जाना जा सकता: एक कुएं का मेंढक समुद्र की कल्पना नहीं कर सकता और एक गर्मी के कीड़े को बर्फ़ का अनुमान नहीं है । फिर एक शास्त्री टाओ को कैसे समझ सकता है ? वह भी अपने ज्ञान का बंदी है ।
शायद, इस तक्षहीन कुंदे के सिद्धांत को लाओ ट्ज़ू ने सबसे अच्छा समझाया है:
संत-पने को छोड़ दो और ज्ञान को त्याग दो,
तो और लोगों को सौ गुणा लाभ होगा ।
दयालुता को छोड़ दो और सच्चरित्रता को त्याग दो,
तो और लोग फिर से संतानीय और प्रेमी बन जाएंगे ।
चालाकी को निकाल दो और लाभ को त्याग दो,
तो और चोर डाकू नहीं रहेंगे ।
यह तीन उदाहरण आभूषण मात्र और अपर्याप्त हैं । इस लिए लोगों को कुछ नारे बनाए गए थे:
सादगी का प्रदर्शन करें,
तक्षहीन कुंदे का आलिंगन करें,
स्वार्थ को घटाएं,
इच्छाओं को कम करें ।
टाओइज़्म कन्फ़ूसियसिज़्म विपरीत है
खास तौर पर कंफ़ूसियस के कठोर नियमों की तुलना में टाओ का सजीव सिद्धांत प्रसन्नचित और हास्यकर दोनो है । आम तौर पर ऐसा प्रसन्नचित और हास्यकर तत्व परंपराविपरीत आंदोलनों का अभिलक्षण होता है । परंपराविपरीत लोग अक्सर मसखरे, रूढ़िमुक्त और व्यभिचारी होते हैं । टाओइज़्म, सूफ़िज़्म और ज़ैन की प्रकांड पांडित्य कथाओं को प्रसारित करने में भी हास्य महत्वपूर्ण था । ऐसी सब प्रथाओं की कहानियों में अस्तित्ववाद और मन:व्यावर्तन तकियाकलामों से सुनने वाले को मोह लिया जाता है । ऐसी सब प्रथाओं की कहनियों में तकियाकलामों से सुनने वाले की अनुभूति को बदला जाता है ।
टाओइज़्म के परंपराविपरीति का हास्यकर तत्व अकसर कन्फ़ूसियसिज़्म के पदक्रम या समाज-राजनीतिक विचारपद्धति को दर्शाने के लिए किया जाता था, जैसे कि निम्नलिखित वाक्य में देखा जा सकता है: एक पेटी के बकल चुराने वाला सारा जीवन इसकी कीमत देता है पर एक राज्य को चुराने वाले को एक सामन्ती राजा होने का सम्मान मिलता है ।
ज़ुआंग ज़ाओ की निम्नलिखित टाओइज़्म के अस्तित्ववाद मन:व्यावर्तन करने वाले हास्य का एक उदाहरण है: एक दिन ज़ुआंग ज़ाओ एक सपना देखता है जिसमें वह एक तितली था । क्या इधर उधर फुदकने वाली तितली अपने आप को देख रही थी कि वह एक तितली है ? तितली ज़ाओ के बारे में नहीं कुछ जानती थी । अचानक उसे ज्ञान हो गया कि वह तो ज़ाओ थी । किंतु अब तितली को यह नहीं पता था कि वह तितली के अपने सपने की ज़ाओ थी या ज़ाओ के सपने की तितली थी । ज़ाओ और तितली के बीच कोई अंतर तो अवश्य होगा । इसे काया पलटना या रूपांतर कहते हैं ।
गिने चुने समकालीन धर्मों में टाओइज़्म एक है जिनमें महिलाओं को पुरुषों से उच्च माना जाता है । टाओ के मत हैं स्वतःप्रवृत्ति, स्वीकृति, आत्मसमर्पण और प्राक्रितिक वर्ग की मान्यता जिन्हें आम तौर पर महिलाओं से जोड़ा जाता है । टाओ टे चिंग महिला झुकाव के उच्च होने के मत का निम्न्लिखित उदाहरण देता है: कोई वस्तु जल से अमादक और स्वीक्रित नहीं है । सख्त और अनम्य पदार्थों को घोलने के लिए जल सर्वोत्तम वस्तु है । सख्ती को नर्मता वशीभूत कर लेती है, दृढ़ को भद्र पराजित कर देता है ।
सचमुच, टाओइज़्म में कोई स्थान नहीं है – बल, अतिशयोक्तिपूर्ण प्रयत्न, मानसिक विश्लेषण और दूसरे प्रथानुकूल पुरुषों से जुड़े हुए गुणों के लिए । यह गुण कन्फ़ूसियज़्मि के ले छोड़ दिए गए हैं । यह मत की महिलाओं के समर्पण जैसे गुण पुरुषों के प्रयास करने के गुणों से उच्च हैं, इस की व्याख्या उस काल के राजाओं और संस्थाओं को दिए गए परामर्श से स्पष्ट है ।
” एक बड़ा राज्य नदी का निस्सरण है, विश्व का संगम है, विश्व की महिला, शांति से पुरुष को वशीभूत कर लेती है, शांति से वह समर्पण करती है, समर्पण करने पर एक बड़ा राज्य छोटे राज्य को पराजित कर देता है, समर्पण करने पर एक छोटा राज्य बड़े राज्य को वशीभूत कर लेता है, एक जीतने के लिए समर्पण करता है, एक जिताने के लिए समर्पण करता है, बड़ा राज्य पूरी प्रजा का पोषण करना चाहता है, एक छोटा राज्य प्रजा की सेवा, समर्पण से दोनो की चाहत संपूर्ण हो जाती है ।”
टाओ के अधिकतर शिक्षण लिखे गए थे उस काल की राज्य संस्थाओंको परामर्श देने के लिऐ । सदियों तक, कई राजा एक टाओ ज्ञानियों का सैन्यदल रखते थे । टाओ के समर्पण गुण और स्थाई ढांचों, वर्ग और वर्गीकरण से अलगाव, इन राज्याधिकारियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे । इस मत का चित्रकरण इन वाक्यों से किया जा सकता है: स्थिर नियम और योजनाएं न होने पर, जनता स्वयं ही संचालन कर लेगी… जितने प्रतिबंध लगाओगे, प्रजा उतनी ही सच्चरित्रहीन हो जाएगी । अधिक अस्त्र शस्त्र रखने से लोग कम सुरक्षित होंगे । जितनी आर्थिक सहायता प्रजा को दोगे, उतनी ही उनकी आत्मनिर्भरता कम हो जाएगी । इसलिए स्वामी कहते हैं: कानूनों को हटाओ और लोग निष्कपट हो जाएंगे ।
टाओ की राजनीति का वर्गीकरण अराजकतावादी करना उचित होगा । अराजकतावादी व्यक्ति के बारे में सबसे बड़ा भ्रम है कि वह राज सरकार नहीं चाहता । यह कुछ सीमा तक उचित है किंतु एकदम उचित होगा कहना कि वह राज्यपाल नहीं चाहता । वह व्यक्ति मान जाएगा कि कोई नियम तो बनाने पड़ेंगे (हो सके तो सर्वसम्मति से) और उनके उल्लंघन को बचाने वाले की भी आवश्यकता पड़ सकती है ।
तो यह स्पष्ट है कि टाओ के सिद्धांत परंपराविपरीति के प्रतीक हैं । बदलाव से लगाव, वैयक्तिकता केंद्रित, और उस काल की प्रबल परंपरा कंफ़ुसियसिज़्म के विरुद्ध – सब परंपराविपरीति के प्रसंगाधीन ढांचे में पूरी तरह समई होते हैं । टाओ का व्यभिचारी भाव, और साथ में मसखरे, रूढ़िमुक्त, तत्क्षण, समर्पित प्राक्रिति बिल्कुल उल्टे थे कंफ़ूसियस की विचारधारा से जो अनुशासन, दृड़ नियमों वाले वर्गीकरण आदर्श जो लोगों में तत्कालीन समा चुके थे ।
दूसरों को जीतने के लिए बल चाहिए और अपने आप को जीतने के लिए आत्मिक शक्ति
टाओ का वू वेई पर ज़ोर देना जो कुछ भी न करने या प्रयत्नहीन क्रिया पर निर्भर था, प्रक्रिति से एक ताल होने की अनुभूति दिल को प्रसन्न कर देती थी जो भावना कंफ़ूसियस की विचारधारा में नहीं थी । पी यू के तक्षहीन कुंदे की शून्यता का सिद्धांत टाओ की असल बुद्धिमत्ता के भाव की अंतर्दृष्टि देता है, जिसमें कोई विश्लेशण है भी तो छुपा हुआ भी कंफ़ूसियस के विधिपूर्ण विश्लेशन को चुनौती देता है । टाओ का राजनैतिक आयाम प्रदर्शन करता है कि किस तरह राज्याधिकारियों को संत टाओ की तरह सोचना चाहिए; स्वाधीन और समर्पित, तत्क्षण और शोभायमान भाव से । टाओ का सारांश है व्यक्तिगत स्थर पर बदलाव के गले लगाने से ही सर्वश्रेष्ठ जीवन मिलता है । लू ज़ाओ का कथित-कथन करते हुए: दूसरों को जीतने के लिए बल चाहिए और अपने आप को जीतने के लिए आत्मिक शक्ती ।